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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६१ चिकित्साका अभ्यास लटकते हुए गाल प्रकट कर रहे हैं कि उसका सिर विजातीय द्रव्यसे बिलकुल भरा हुभा है। जिस तरह वह एकटक देख रहा है, उससे यह डर होता है कि कदाचित उसके मस्तिष्कमें पागलपन प्रारम्भ हो गया है। आइये उसे अधिक ध्यानसे देखें। देखिये उसकी गरदन लगभग उतनी ही मोटी है जितना उसका सिर। इसलिये दोनों में कुछ भी फरक नहीं मालूम पड़ता। गरदन चारों ओर सूजी हुई और बिलकुल कड़ी मालूम पड़ती है। इस वजहसे सिर एक ओरसे दूसरी मोर नहीं घुमाया जा सकता। हां, वह सिर्फ ऊपरकी ओर उठाया जा सकता है । गरदनके पीछे जोड़वाली हड्डी और जबड़ेपर चेहरेको गरदनसे अलग करनेवाली लकीर बिलकुल ही गायब है। अब हम देख सकते हैं कि इस आदमीके सारे शरीर में बहुत अधिक बादीपन है। पर आजकल लोगोंको इस बातका बहुत कम ज्ञान है कि स्वाभाविक प्राकृति कैसी होनी चाहिये, इसलिये अधिकतर लोग इस रोगीको दृढ़ और स्वस्थ मनुष्य समझेंगे। यह स्पष्ट प्रकट है कि यह रोगी चिरकालसे चित्तकी मस्थिरता और अशक्यतासे पीड़ित है। युवावस्थासे ही उसे अपच और विशेषतः कब्जियतकी शिकायत थी। इसमें भी कोई सन्देह नहीं कि उसे बवासीरकी भी शिकायत है। यह भी निश्चय है कि उसे शान्तिके साथ ऐसी नींद कभी नहीं आती कि जिससे उसे अपने बदनमें ताजगी मालूम पड़े शायद उसे. For Private And Personal Use Only
SR No.020024
Book TitleAakruti Nidan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLune Kune, Janardan Bhatt, Ramdas Gaud
PublisherHindi Pustak Agency
Publication Year1949
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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