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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चिकित्साका अभ्यास नहीं है। उसका सिर कुछ आगेकी भोर झुका हुमा है। चेहरा एक दम सुर्ख है और उसपर घबड़ाहट या जोशके चिह्न दिखलाई पड़ते हैं। माथेपर चर्बीकी गद्दीसी उभरी हुई मालूम पड़ती है। ___ हम तुरन्त देख सकते हैं कि इस आदमी में पीछेकी ओर बादीपन है। अधिक ध्यान देनेसे पता लगता है कि गरदनके पीछे जोड़वाली हड्डी सड़े हुए विजातीय द्रव्यके भरी हुई है जिससे वह अपना सिर इधर-उधर नहीं हिला सकता। जब मैंने उससे सिर इधर उधर हिलानेको कहा तो ऐसा करने में उसे अपना कुल बदन हिलाना पड़ा। बगलकी मोरवाले बादीपनके चिह्न दोनों तरफ दिखलाई पड़ सकते हैं। गरदनकी हर ओर कड़ी सूजन है उससे यह स्पष्ट होता है कि उसके सामनेकी ओर बिलकुल बादीपन नहीं है। यह रोगी बहुत ही कमजोर है और शायद वह और अधिक मानसिक परिश्रम या बहुत देरतक लगातार शारीरिक परिश्रम करनेके अयोग्य है । उदाहरणार्थ वह किसी व्याख्यानको प्रारम्भसे अन्ततक समझनेके लिये मनको यथेष्ट एकाग्र नहीं कर सकता। उसमें इतनो शान्ति या स्थिरता नहीं है कि वह लगातार कुछ देरतक बैठकर गाना बजाना सुन सके या नाटक वगैरह देख सके। वह किसी कमरेमें बहुत देरतक बैठनेमें भी असमर्थ है। इस बातका बड़ा डर है कि शायद इसके मस्तिष्कमें कुछ विकार न हो जाय। For Private And Personal Use Only
SR No.020024
Book TitleAakruti Nidan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLune Kune, Janardan Bhatt, Ramdas Gaud
PublisherHindi Pustak Agency
Publication Year1949
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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