SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 59
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्राकृति-निदान क्या है ३५ मौजूद रहती है कि वे अपने भीतरी गंदे मलको बाहर निकाल सकें। पर मल वा पाखाना मुनासिब शकलमें पानेके पहिले ही बाहर निकल जाता है। दोनों दशाओं में भोजन ठीक तरह नहीं पचता। एक तो पाचन दुरुस्त न होनेसे शरीरका यथेष्ट उपकार नहीं होता दूसरे लगातार विजातीय द्रव्य शरीर में अपना घर करता रहता है। जिसका फल यह होता है कि शरीरमें खून कम हो जाता है और कुल शरीर क्षीण होने लगता है। क्षय. रोगका चिह्न यह है कि चाहे कैसा ही "पौष्टिक" भोजन किया जाय पर कमजोरी दिनपर दिन बढ़ती जायगी और शरीर क्षीण होता जायगा। इससे स्पष्ट होता है कि भोजनकी अपेक्षा पाचनयन्त्रकी दशाका दुरुस्त रहना अधिक आवश्यक है। चाहे किसी प्रकारका बादीपन क्यों न हो पर उपर्युक्त रीतिसे आप पाचन शक्तिकी गड़बड़ीका अनुमान तुरत कर सकते हैं। यदि बादीपन बायीं ओर हो तो समझ लें कि पाचनेन्द्रियोंके बायीं ओरके भागों में सबसे ज्यादा गड़बड़ी है। उस भागमें कभी कभी . या लगातार पीड़ा होती रहती है, पेट कोचता रहता है। बादीपन दाहिनी ओर होनेसे विशेषकर उसी ओर पीड़ा होती है। और बादीपन पीछेको ओर होते खासकर प्रांतोंके पीछेवाले हिस्से में पीड़ा होती है। ऐसी दशामें पूर्व कथनानुसार प्रायः खूनी बवासीर हो जाता है। बदन के सामनेवाले भागमें बादीपन रहनेसे तो पाचनेन्द्रियों में उतना गड़बड़ नहीं होता जितना अन्य प्रकार के बादीपन में पैदा होता है। पीड़ा और बेचैनी अन्य For Private And Personal Use Only
SR No.020024
Book TitleAakruti Nidan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLune Kune, Janardan Bhatt, Ramdas Gaud
PublisherHindi Pustak Agency
Publication Year1949
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy