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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३४ आकृति निदान घटती जाती है। ऐसा भी होता है कि जिस आदमी में यह रोग होता है वह कोई कष्ट अनुभव नहीं करता, क्योंकि जब शरीर के अन्दरवाली इन्द्रियोंकी सड़न और उनकी खराब हालत पुगनी पड़ जाती है तो उनसे बहुधा किसी प्रकारकी पीड़ा नहीं होती । पचनेन्द्रियोंको सदा इस प्रकार अपना काम करना चाहिये कि हमें यह बिल्कुल ही न मालूम पड़े कि वे काम कर रही हैं। यह बात कमसे कम सिर्फ उन्हीं लोगोंमें देखी जाती है। जो अपना अधिकतर समय खुली हवा में बिताते हैं। अधिकतर लोगोंको पेट या प्रांतोंमें हलकी सी पीड़ा उठा करती है। अगर उन हिस्सों में कोई बड़ी पीड़ा नहीं उठती तो वे अपनेको भाग्यवान् समझते हैं। लेकिन ऐसी अच्छी पाचनशक्ति जैसी कि मैने बतायी है बादीवाले आदमी में कभी नहीं मिल स्वभावतः उन लोगोंकी पाचनशक्ति बहुत ही खराब जिनके शरीर में महल सूख जाता है । ऐसी हालत में पाचन इन्द्रियां सड़ जाती हैं और कब्ज या दस्तकी बीमारी शुरू हो जाती है । कब्ज और दस्तकी बीमारियां शरीरकी भीतरी गरमी से पैदा होती हैं। कब्ज उस समय पैदा होता है । जब कि आंतोंकी लसदार भिल्ली सुख जाती है । ऐसी दशा में पाखाना बाहर नहीं निकल सकता, क्योंकि इसकी नमी जाती रहती है और वह कड़ा तथा ठोस बन जाता है। दस्तकी बीमारी तब शुरू होती है जब कि प्रांतो में इतनी काफी ताकत For Private And Personal Use Only पृष्ठ ३ में सकती । होती है
SR No.020024
Book TitleAakruti Nidan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLune Kune, Janardan Bhatt, Ramdas Gaud
PublisherHindi Pustak Agency
Publication Year1949
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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