SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 51
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आकृति निदान क्या है २७ बादीपनमें प्रायः बहुत अधिक पसीना निकलता है जिससे बादोपन बढ़ने नहीं पाता । जैसे, जिसके दाहिनी ओर बादीपन होता है उसके दाहिने पैर से प्रायः पसीना निकलता रहता है। जिस आदमी में दाहिनी ओर बादीपन रहता है उसमें भीतरी बुखार प्राय: इतना तेज नहीं होता, जितना बाई ओरवाले बादीपनमें। लेकिन यदि किसी कारण से दाहिनी ओर के बादीपनकी दशा में पसीना आना बन्द हो जाय तो दशा तत्काल सोचनीय हो जाती है । (ग) पीठका वादीपन ( तस्वीर नं० २० से लेकर २५ तक 1 तीनों प्रकार के बादीपन में पीठवाला बादीपन सबसे अधिक भयंकर है। यह बादीपन पीछे की ओर ऊपर तक चढ़ जाता है, और उससे आकृति में अनेक परिवर्तन हो जाते हैं । कभी-कभी विजातीय द्रव्य सिर तक नहीं पहुँचता पीठ में ही बना रहता है जिससे पीठ सूत्र जाती है। ऐसी सूजन आरम्भ में साधारण होती है पर बढ़ते-बढ़ते वह बड़ी शकज़की हो जाती है। कभी-कभी उसके कारण दोनों कन्धे गोल हो जाते हैं, कभी पीठपर बड़ी भारी कूबड़ निकल आती है । पर विजातीय द्रव्यका सिरतक न पहुँचना बड़े सौभाग्य की बात है, क्योंकि जब विजातीय द्रव्य पीछे की ओरसे सिर में पहुँचता है तो बहुत ही भयंकर परिवर्तन उत्पन्न होते हैं । गरदनके पीछेको जोड़वाली हड्डी बढ़ जाती हैं। और गरदन तथा सिर के पीछेवाले हिस्से के बीच में जो जुदा ४ For Private And Personal Use Only
SR No.020024
Book TitleAakruti Nidan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLune Kune, Janardan Bhatt, Ramdas Gaud
PublisherHindi Pustak Agency
Publication Year1949
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy