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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आकृति निदान सामनेवाले बादीपनका सम्बन्ध विशेषतः शरीरके सामनेवाले हिम्सेसे है। तस्वीर नम्बर ५, ७, ३६ और ३७ इस तरहके बादीपनके उदाहरण हैं। इस बादीपन को भली भाँति समझने के लिये मैंने तस्वीर नं. ६ में जैसी चाहिये वैसी स्वाभाविक आकृति दे दी है। पाठक उन दोनों चित्रों का मिलान करके दोनोंका अन्तर देखें। सामनेवाले बादीपनकी दशामें गला सामनेकी ओर साधारणतः कुछ बढ़ा रहता है । तस्वीर न० । और चेहरा बहुत बड़ा और भरा हुआ मालूम पड़ता है। प्रायः केवल मुख ही आगेकी ओर निकला सा रहता है । चेहरेके बारे में यह एक विशेष बात ध्यानमें रखनी चाहिये कि चेहरेके चारों ओर एक ऐसी लकीर सी रहती है जो सिरके दूसरे हिस्सेसे चेहको अलग करती है: जब सामनेकी ओर बादीपन रहता है तब यह लकीर साधा. रणतः अपने स्वाभाविक स्थानपर नहीं बल्कि कुछ पीछेकी ओर रहती है। (तस्वीर नं० ७, ८)। भार सामने वाला बादीपन बहुत ज्यादा रहता है तो चेहरा फूला हुआ मालूम पड़ता है और माथेपर एक चर्बीदार गद्दी सी बन जाती है। पर इस तरहकी चर्बीदार गद्दी पीठके बादीपनमें भी रहती है। इसलिये सामनेवाले वादीपनकी यह कोई खास पहचान नहीं है । इससे केवल यह सूचित होता है कि बादीपन दिमागतक पहुँच गया है। ___ बहुत सी दशाओं में गलेपर गांठ सी पड़ जाती है ( तस्वीर नं. १०, ३८, इससे यह सुचित होता है कि बादीपन बहुत For Private And Personal Use Only
SR No.020024
Book TitleAakruti Nidan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLune Kune, Janardan Bhatt, Ramdas Gaud
PublisherHindi Pustak Agency
Publication Year1949
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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