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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir on प्राकृति-निदान क्या है जल-चिकित्सासे गलेका विजातीय द्रव्य घट जाता है और पेटवाला साथ ही बढ़ जाता है। __पेटसे चलकर सिरतक पहुँचनेमें विजातीय द्रव्य सदा एक ही मार्गसे नहीं जाता। यह बात शायद उन भिन्न-भिन्न अंगोंकी शक्तिपर निर्भर है जिनके मार्गसे होकर यह मल चलता है । मनुष्य साधारणत: जिस करवट सोता है उसपर भी यह बात कुछ कुछ निर्भर है। इस तरह मल शरीरके सामनेवाले भागमें या एक ओर अथवा पीछेकी ओर सबसे अधिक अंशमें रहता है। इसलिये शरीरका बादीपन तीन तरहका हो सकता है १) शरीरके सामनेवाला बादीपन । (२) शरीरके बगलवाला बादीपन । । ३ शरीरके पीछेवाला बादीपन । बगलवाला बादीपन दाहिनी ओर भी हो सकता है और बाई ओर भी। प्रायः एक ही प्रकारका बादीपन आदमियों में नहीं रहता। उपर्युक्त दोनों या तीनों प्रकार के बाढीपन एक साथ पाकर इकट्ठे हो जाते हैं। सामने और बगलबाला या बगल और पीठवाला या कभी-कभी कुन शरीरका बादीपन एक साथ इकट्ठा हो जाता है। भिन्न-भिन्न प्रकारके बादीपनको साफ तौरसे समझनेके लिये हम हर एकके ऊपर अलग अलग विचार करेंगे। (क) सामनेवाला बादीन ( देखिये तस्वीर नं. ५, ७, ३६ और ३७) For Private And Personal Use Only
SR No.020024
Book TitleAakruti Nidan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLune Kune, Janardan Bhatt, Ramdas Gaud
PublisherHindi Pustak Agency
Publication Year1949
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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