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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra अकबर की धार्मिक नीति www.kobatirth.org - Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir , रक्षाबन्धन दशहरा, दीवाली व बसन्त आदि को वह बड़े उत्साह से मनाने लगा था । कभी कभी वह बापने मस्तक पर हिन्दुओं की भांति तिलक भी लगाया करता था | हिन्दू राजावों के विधान के अनुसार उसने मी प्रतिदिन प्रातः काल अपनी प्रजा को करोड़ों द्वारा दर्शन देना आरम्भ कर दिया था । अपनी माता हमीदा बानू बेगम की मृत्यु पर हिन्दुओं की भांति ही सिर मुडवा कर शोक मनाया । बदायूंनी लिखता है कि अकबर ने अपने पुत्र सलीम का विवाह हिन्दू प्रथा के अनुसार ही किया । विवाह के अवसर पर वह स्वयम् दूल्हे सलीम की बारात लेकर, जिसमें अनीर व दरबारी शामिल थे, दुल्हन पिता राजा भगवन्त दास के निवास स्थान पर गया । वहां सभी अमीरों व सरकारों के सामने हिन्दू प्रथा के अनुसार अग्नि प्रज्वलित करके उसके चतुर्दिक फेरे लगा कर प्राणि ग्रहण की रस्म पूरी की गयी थी और दुल्हन के विदा होने के समय उसके निवास स्थान से लेकर राजमहल तक उसकी पालकी बारों और पूरे मार्ग में सोने की मुहरें अशर्फियां हर्ष और उल्लास में बिखेरी गयी थी । (३) फतेहपुर सीकरी में दीवान ए - बाल में विष्णु स्तम्भ पर अकबर अपना सिंहासन रख कर बैठता था । यह उस वैष्णव परम्परा का प्रभाव है, जिसके अन्तर्गत राजा को पृथ्वी पर ईश्वर का प्रतिनिधि माना जाता है । अकबर ने स्वयम् ब्राह्मणों से पूजा पाठ की विधियाँगीर मंत्र - सीखे । वह रात्रि के समय सूर्य के एक सहस्त्र नाम माला पर जपा करता था । बीरबल के अनुरोध पर बादशाह सूर्य की पूजा करने लगा था । बदायूंनी लिखता है कि "A second order was given that the Sun should be worshipped four times a day, in the - ३ - Al-Badaoni Trans. by W.H. Lode Vol. II. P. 341 For Private And Personal Use Only ان
SR No.020023
Book TitleAkbar ki Dharmik Niti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNina Jain
PublisherMaharani Lakshmibhai Kala evam Vanijya Mahavidyalay
Publication Year1977
Total Pages155
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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