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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अकबर की धार्मिक नीति + + + + + + + + + + + + + + अकबर ने मसजिदों का निर्माण करवाया और हिन्दुओं से जजिया तथा यात्रा कर भी वसूल किये । यद्यपि इस अवधि में अकबर मध्य युग के सच्चे मुसलमान सम्राट का प्रतिसप था, किन्तु वह कटटर और मान्य नहीं वा और न ही उसने हिन्दुओं पर धार्मिक अत्याचार किये क्योकि पाकि कटटरता के लिये तो वह स्वभावत: प्रतिलाल था । १५५१ तक उसे कोई धार्मिक सुधार नहीं किये क्योकि शासन प्रबन्ध पूर्ण रूप से बराम खां अधीन था । इस लिये वह धार्मिक कार्य करने और नीति अपनाने के लिये स्वतंत्र नहीं था । जैसे जैसे उसके साम्राज्य का विस्तार होता गया उसका धार्मिक विश्वास मी दिन पर दिन बढ़ता गया । शेख सलीम चिश्ती के कारण वह प्राय: फतहपुर में रहता था । मी से अलग पास ही एक पुरानी सी कोठरी थी उसके पास पत्थर की कसिल पड़ी थी, वहां तारों की शंव में अकेला जाता था । प्रमात का समय ईश्वरारापन में लगाता था, वहुत ही नभृता और दीनता से जप करता था तथा ईश्वर से इवार मागता था । लोगों के साथ भी प्राय: पार्मिकता और बास्ति -कता की ही बात करता था । यहीं से उसकी धार्मिक नीति का विकास ! प्रारम्भ होता है। धार्मिक नीति के विकास का क्रमिक वर्णन - Don - - - -- अकबर सत्य धर्म को जानने का हक था और हिन्दू - मुसलिम पेद - माव मिटाना चाहता था इसके लिये उसने जो उदार धार्मिक नीति अपनाई उसका कमिक विकास इस प्रकार से है - राजपूत राजकन्याओं से विवाह : सन् १५३२ ईस्वी के जनवरी महिने ६ अकबर ख्वाजा मुइनुदीन - चिश्ती की यात्रा के लिये बगर गया। रास्ते में पौसा गांव में वर्ष ( जयपुर की पुरानी राजधानी ) के राजा विहारीमल ने अपनी बड़ी रुड़की हरफू बाई को अकबर के साथ व्याह देना स्वीकार कर लिया। For Private And Personal Use Only
SR No.020023
Book TitleAkbar ki Dharmik Niti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNina Jain
PublisherMaharani Lakshmibhai Kala evam Vanijya Mahavidyalay
Publication Year1977
Total Pages155
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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