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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अकबर की धार्मिक नीति 68 से ही अऔर तक पैदल गया । वहां जाकर दरगाह में परिक्रमा करता था और हजारों लाखों रुपयों के दावे और मेटे चढ़ाता था । पहरी सच्चे । दिल से ध्यान क्यिा करता था और दिल की मुराई मांगता था । - फकीरी वादि के पास ता था, निष्ठा पूर्वक उनके उपदेश सुनवा था । ईश्वर के मजन और चर्चा में समय बिताता था । धर्म संम्वन्धि बात सुनता था और धार्मिक विणर्या की शनबीन करता था । विद्वानों, गरीबों फकीरी बादि को धन - सामग्री और जागीर बादि दिया करता था। जिस समय कव्वाल लोग धार्मिक गजळे गाते थे, उस समय वहां रुपों और बशफिर्या आदि की वां होती थी ।" या हादी "या मुईन" का पाठ दही से सीखा था । पर म हसका जप क्यिा करता था और सब को बाशा थी कि इसी का जप करते रहे ।"२ तत्कालीन इतिहास ! लेखक बदामी के अनुसार पी हमें पता चलता है कि अबर दिन में न केवल पांच बार नमाज ही पढ़ता था बल्कि वह राज्य, धन - दौलत और मान • प्रतिष्ठा प्रदान करने की भगवान की अपार अनुकम्पा के प्रति - कृतज्ञता प्रकट करने के निमित्त प्रतिदिन प्रात: काल ईश्वर का चिन्तन - करता था और" या - ( या - हादी" का ठीक मुसलमानी ढंग से उच्चारण करता था । " ३ वह मुसलमान धार्मिक पुरुओं का सत्संग लाम करता था और प्रत्येक वर्ष अजमेर में स्वाजा मुइनहीन पिश्ती की दरगवाह की पक्ति - माव से यात्रा करता था । वह इस्लाम का पक्का अनुयायी था और इस्लाम की बुराई या निन्दा करने वालों को कठोर दण्ड भी देता था । मक्का मदीना की तीर्थ यात्रा में विश्वास करता था: और अपने परिवार के सदा तथा सम्बन्धिों को राजकीय व्यय से हज के लिये भेजता था। २ अम्बरी-दरबार हिन्दी अनुवादक -रामचन्द्र वर्मा पल्ला भाग पृ०६८ 3 - Al-Badacn1 Trans, by K.H. Lowe Vol. II P. 203. 6 + For Private And Personal Use Only
SR No.020023
Book TitleAkbar ki Dharmik Niti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNina Jain
PublisherMaharani Lakshmibhai Kala evam Vanijya Mahavidyalay
Publication Year1977
Total Pages155
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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