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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org अकबर की धार्मिक नीति 43 .. अधीनता और नम्रता में वह सब से आगे था । वह दरवेशों का मित्र था, और स्वयम् बहुत धार्मिक और नेक इरादों का मनुष्य था । 4 वूल्जले हेग का भी कहना है कि बुद्धिमत्ता, उदारता, निष्कपटता, सद प्रवृत्ति, आज्ञाकारिता एवं विनम्रता में वह सर्वोपरि था । बकबर पर अपने संरक के उदार विचारों का बहुत प्रभाव पड़ा । बेराम लां ने ही अकबर की शिक्षा के लिये सुयोग्य, उदार विचार वाले व सुसंस्कृत विद्वान अब्दुष्ट - लतीफ को नियुक्त किया । अब्दुल लतीफ अपने धार्मिक माछ में इतना उदार था कि अपनी जन्म भूमि फारस में लोग उसे सुन्नी कहते थे और उत्तरी भारत में यहां अधिक सुन्नी उसे शिया समझते थे। इतना महान होते हुए भी यद्यपि वह अकबर को पढ़ाने में असमर्थ रहा किन्तु उसने अकबर की जो सुह र कुल का पाठ पढ़ाया उसे अकबर आजीवन नहीं मूला । सुट ह ए कुल अर्थात सर्वजनित शान्ति के पाठ से अकबर ने समझ लिया 0 था कि यदि साम्राज्य में शान्ति बनाये रखनी है तो धार्मिक विचारों को उदार बनाना होगा, धार्मिक मैद भावों को मिटाना होगा बर हिन्दुओं को भी मुसलमानों के समान साम्राज्य के उच्च पद पर नियुक्त करना होगा । ५. राजपूत कन्याओं से विवाह और अकबर पर उनका प्रभाव id NO e-ce que cut राजपूतों के प्रति अकबर का व्यवहार किसी अविचारशील भावना का परिणाम नहीं था और न ही राजपूतों की धीरता, वीरता, स्वदेश भक्ति और उदारता के प्रति सम्मान का ही परिणाम था । उसका तो यह व्यवहार एक सुनिर्धारित नीति का परिणाम था और यह नीति स्वलाम, योग्यता की स्वीकृति तथा न्याय नीति के सिद्धान्तों पर आधारित थी । बारम्भ में ही अकबर ने यह अनुभव कर लिया था कि उसके 6- Al-Badaoni- Vol. III P. 190. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir • (265) For Private And Personal Use Only
SR No.020023
Book TitleAkbar ki Dharmik Niti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNina Jain
PublisherMaharani Lakshmibhai Kala evam Vanijya Mahavidyalay
Publication Year1977
Total Pages155
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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