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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चोलत अकबर की धार्मिक नति __ 120 के बाद भी सन १५५6 में बहुत से मुसलमान स्त्री - पुरुषों को हर जाने की स्वीकृति दी गई थी। तृतीय ईसाई शिष्ट मण्डल के पारी जब वाये तो उन्होने मी अनेक मुसलमान स्त्री पुरुर्गा को हज जाते देखा। ३. अकबर पर यह बारोप लगाया गया कि उसे हजरत मोहम्मद तथा : वहमद के नाम से घृणा हो गयी थी । यह धारोप भी निराधार है । अकबर का स्वयम् का नाम कालुद्दीन मुहम्मद अकबर था । लड़कों का बहमद एव मुहम्मद के नाम से नामकरण करना साधारणतयासभी स्थानों । पर प्रच्छातित था । इसके अलावा मुहम्मद शब्द उसकी राजकीय मुद्राओं पर बंक्ति किया जाता था । उसने पैगम्बर मुहम्मद के नाम से घृणा नहीं की । मुहम्मद या अहमद नाम न रखने के पीछे सबर की यह भावना थी कि इस प्रकार नाम रखना पैगम्बर मुहम्मद बार इस्लाम की बन्य विभूतियों के प्रति सम्मान प्रकट करना है। इस बात को तो बदायुनी ने मी! स्वीकार किया है कि पृष्ट और दुष्ट स्त्री को मुहम्मद की पुत्री फातिवा के नाम से पुकारता अनपयुक्त होगा । ४. दाड़ी बनवाना एक सामाजिक और सांस्कृतिक परम्परा है बार उससे इस्लाम धर्म का पतन या अवहेलना नहीं होती । दाड़ी वनवाने की अनुमति हाजी हाहीम के फतवे से हो गयी थी । यदि दाड़ी। बनबाने से इस्लाम की उपेक्षा होती तो मुसलमानों का आधे से अधिक विश्व इस्लाम की उपेक्षा कर उससे पृथक हो जाता । इसके अलावा अकबर ! के शासन काल के पश्चात के समय के चित्रों से ज्ञात होता है कि दरवारी ! तथा सरदार सूब दाड़ियां रखते थे । यदि उकबर ने अपनी दाड़ी कटादी तथा उसके कुछ दरबारियों ने उसका स्तुसरण किया तो इससे यह नहीं समझ लेना चाहिये कि अकबर ने इस्लाम का दमन किया । ५. सन १५७८-७६ में शेल ताजुद्दीन ने सिजदा अथवा साष्टांग प्रणाम प्रारम्भ किया और इसे मी बोस कहा गया । कटटर इस्लामी धारणावों के अनुसार सिजदा केवल अल्लाह के लिये ही है, परन्तु हराम के कुछ धर्म . For Private And Personal Use Only
SR No.020023
Book TitleAkbar ki Dharmik Niti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNina Jain
PublisherMaharani Lakshmibhai Kala evam Vanijya Mahavidyalay
Publication Year1977
Total Pages155
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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