SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 105
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 3ਝਦ ਲੀ ਗਰੰਜਨ ਕੀਰ ( जैन साधुओं ) बोर ब्राह्मणों से स्कान्त में विशेष रूप से मिलता था उनके सहवास में विशेष समय बिताता था । वे तिक, शारीरिक, धार्मिक और आध्यात्मिक शस्त्रों में धानति की प्रगति में और मनुष्य जीवन की सम्पूर्णतया प्राप्त करने में दूसरे समस्त ( सम्प्रदायाँ ) . विद्वानों और पंडित पुरुषों को पैदा हर तरह से उन्नत थे । वे अपने मत की सत्यता और हमारे ( मुसलमान ) धर्म के दोण बताने के लिये बुद्धि पूर्वक परम्परागत प्रमाण देते है । वे स्सी उड़ता और मुक्ति से अपने मत का समर्थन करते थे कि उनका कल्पना तुल्य मत स्वत: सिद्ध प्रतीत! होता है । उसकी सत्यता के विरुद्ध नास्तिक भी कई शका नहीं उठा सकता था । " १७ ___ अकबर पर जैनधर्म का इतना अधिक प्रभाव देख कर कुछ लोग तो उसे भी समझने लगे थे लेकिन जैसा कि पहले भी कहा जा चुका है कि वस तो प्रत्येक धर्म की सत्यता जानना चाहता था । इस लिये इबादतखाने में होने वाली विचार गोष्ठियों में उसने अनाचार्यों को आमंत्रित - किया । वाद विवाद में उसे जैन धर्म में जो बच्छाश्यां दिखाई दी उन्हें उसने अपना लिया । इसके साथ साथ यह भी अविस्मरणीय है कि जनकल्याण के कार्य, पवित्र तीर्थ स्थानों की सुरक्षा आदि जैन और हिन्दू दोनो माँ के सामूहिक प्रभाव का सुफल था । अकबर और ईसाई धर्म : ___ ईसाई र्म के गढ रहस्यों को समझने के लिये व अकबर ने गोवा से! ईसाई पादरियों को आमंत्रित करने का निश्चय किया । गोवा से प्रथम असुबट मिशन: पुर्तगाली ईसाई पादरियों का जो प्रथम शिष्ट मण्डल, १५८० में - - - - - - - 17- AL-Badaoni Trans. by N.H. Love Vol. II. P. 264. For Private And Personal Use Only
SR No.020023
Book TitleAkbar ki Dharmik Niti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNina Jain
PublisherMaharani Lakshmibhai Kala evam Vanijya Mahavidyalay
Publication Year1977
Total Pages155
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy