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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org अकबर की धार्मिक नीति 83 मी व्यक्ति एक वर्ष में है महीने और है दिन तक जीव हिंसा न करें । उन दिनों में स्वयं बादशाह भी मांसाहार नही करता था । इस बात को बन्यान्य जैनैतर लेखकों ने भी माना है। अवसर का सर्वस्थ गिना जाने वाला शेख अबुल फजल लिखता है कि वह ( अकबर ) आयु की लागजियों का कुछ अंशों में पालन करता हुआ भी शनै: शनै: मांसाहार शेडने का इरादा रखता है । वह बहुत दिन तक प्रत्येक शुक्रवार वीर पश्चात रविवार के दिन मांसाहार का परहेज करता रहा था । अब प्रत्येक सोर महीने की प्रतिपाद को, रविवार को, सूर्य और चन्द्र ग्रहण के दिनों में सौर मास के प्रत्येक त्यौहार में, फरवरदीन के महीने मैं, दो उपवासों के बीच के दिनों में, रजब महीने के सोमवारों में और बादशाह जन्मा था उस बारे महीने में यानी बारे बबान महीने में मांसाहार नही करता है । १५ अकबर ने स्वयम् कहा है कि Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Men should annualy refrain from eating meat on the anniversary of the month of May accession as a thanksgiving to the almightly order that the year may pass in prosperity." 16 जैन धर्म के प्रभाव से अकबर ने निश्चित रूप से साम्राज्य में जीव हिंसा का अन्त नहीं तो उसे कम करने का, उसकी तीव्रता और बर्बरता को कम करने का प्रयास अवश्य किया था । पांच पांच सौ चिड़ियों की जी जो नित्य प्रति खाता था, मृगादि पशुओं का जो नित्य शिकार करता था, वही मुसलमान बादशाह जैन साधुओं के उपदेश से इतना दयालु हो गया था । जैन साधुओं के इस महत्व को बदायूंनी मी स्वीकार करता है । वह लिखता है कि सम्राट अन्य सम्प्रदार्थों की अपेक्षा श्रमणों .. 15- Ain-1-Akbari Trans, by H. Blochmann Vol. I PP. 61-62. Trans, by H.S.Jarrett. Vol. III P. 446. 16 -do For Private And Personal Use Only
SR No.020023
Book TitleAkbar ki Dharmik Niti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNina Jain
PublisherMaharani Lakshmibhai Kala evam Vanijya Mahavidyalay
Publication Year1977
Total Pages155
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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