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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ९२ SHAHRK ९४ www.kobatirth.org Acharya Shn Kailassagarsun Gyanmandir तोला ३ तेल तो. ५ सबको मिलाकर शररिमें मसले पथ्य में गहुंकी धुली गायका दुध खावे दिन ७|१४|२१ एसे करे तो गर्मी जावे १९०, १९५, १९३, १९६, ६७, १९७, १९५, १९९, ३५ आम्रत्वगरसभावना एकं जम्बुत्वकूरसभावना | एकं न्यग्रोधजटारसेन गुटिकां कृत्वा अजातक्रेन गुटिका दीयते वाहिवाडोयाति १९० हिंगल शुद्ध १९५ शुद्धवच्छनाग १९३ अकलकरो १९६ मोचरस ६७ अफीम १९७ धावडीफुल १९८ बलबीज १९९ काकडासिंगी ३५ जातिफल आम्रत्वक्के रसकी भावना एक, जम्बुत्वक्केसरकी भावना एक वडजटाके रससे गोली बांधे बकरीके छाछसे लेवे वाहीवाडा जावे ९३ | २१०, २११, २१२, २१३, २१४, २१५, २६, ५९, १५४, १०७, ११, तकवारिमध्यें चतुः प्रहरं पाच्यते | प्रभाते शुष्कवृतांकेनसह सघृष्य परिमर्दिते दद्रौ सर्वे चर्म रोगायाति २१० बेहडा २११ आंवला, २१२ जावित्री २१३ पवाड्या २१४ कवाबचिनी २१५ कुवाकी काई २१६ हाटकी धूली ५९ गंधक १५४ मालवीवावची १०७ हरताल ११ पतंजारी छाछकी आछमें प्रहरचार पकावे सबेरे सुकावेगन | से दादमें खाजकर दवा मसले दद्रु आदि सब प्रकार चर्म रोग जावे | २२१, २२२ गोदुग्धेन क्षीरान्नं कृत्वा पुष्प समये दिन त्रयं यावत् दीयते गर्भपातस्य रक्षा अपत्यानि जीवन्ति | २२१ स्वेतवुई जड २२२ काली दुई गायके दुधमें क्षीर जैसा पकाकर ऋतु समये दिन तीन देवे जिसका गर्भ गिर जाता हो उसकी गर्भ की रक्षा होती है For Private And Personal Use Only おすす आकाशगामिनी विद्याकल्प २५
SR No.020022
Book TitleAkashgamini Padlepvidhi kalpa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddh Nagarjun
PublisherJain Prachin Sahityoddhar Granthawali
Publication Year1941
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size2 MB
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