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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अग्रवाल जाति का प्राचीन इतिहास ८६ | उनकी अपनी पृथक स्वतन्त्र राजनीतिक सत्ता से इन्कार नहीं किया जा सकता । ऐसे राज्यों के लिये कौटलीय अर्थ शास्त्र का 'वार्ताशस्त्रोपजीवि' विशेषण बड़े महत्व का है। यह उनकी दशा का ठीक-ठीक वर्णन करता है । जैसा हम पहले लिख चुके हैं, वार्ता का मतलब कृषि, पशुपालन, तथा वणिज्या ( वणिज व्यापार ) से है । ये गण - राज्य मुख्यतया खेती, पशुपालन व वणिज व्यापार करके अपनी आजीविका चलाते थे । पर स्वतन्त्र राज्य होने से इनके लिये शस्त्रधारण करना भी आवश्यक होता था । संसार के प्राचीन इतिहास में फिनीसिया, कार्थेज व कारिन्थ इसी तरह के राज्य थे । कार्थेज अफ्रीका के उत्तरी कोने में इटली के ठीक सामने एक छोटा सा नगर राज्य ( City state व गण ) था । व्यापार के लिये वह जगत् प्रसिद्ध था । पर साथ ही, वहां के लोग अद्भुत वीर भी थे । रोम के साथ इनके बहुत से युद्ध हुवे । प्राचीन दुनियां के बहुत से राज्य इसी तरह के वार्ताशस्त्रोपजीवि होते थे, साम्राज्यवाद के विकास के कारण इनकी राजनीतिक सत्ता नष्ट हो गई । इन्हें शस्त्र धारण की आवश्यकता न रही। इस तरफ से छुट्टी पाकर इन्होंने अपना सारा ध्यान खेती, पशुपालन व व्यापार में लगा दिया । परिणाम यह हुवा कि ये विशुद्ध व्यापारिक जातियां बन गई । संसार के अन्य देशों में भी छोटे छोटे गण राज्य थे। उनके भी अपने रीति रिवाज, नियम तथा विशेषतायें थीं । साम्राज्यवादी सम्राटों से जीते जाने के बाद जो वे भारत के समान जात-बिरादरी में नहीं बदल गई, उसका कारण यूरोप के सम्राटों की असहिष्णुता है । दूसरे देशों के सम्राटों ने 'स्वधर्म' पर जोर नहीं दिया । विविध लोगों For Private and Personal Use Only
SR No.020021
Book TitleAgarwal Jati Ka Prachin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyaketu Vidyalankar
PublisherAkhil Bharatvarshiya Marwadi Agarwal Jatiya Kosh
Publication Year1938
Total Pages309
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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