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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ८५ अग्रवाल जाति की उत्पत्ति आगे रसेल साहब ने इसी तरह के अन्य भी बहुत से उदाहरण दिये हैं। Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कर्नल टाड ने अपने प्रसिद्ध ग्रन्थ राजपूताना का इतिहास में चौरासी वैश्य जातियों की नामावली दी है, जिनके सम्बन्ध में उनका खयाल है कि उनका उद्भव राजपूतों से हुवा था । इस नामावली में अग्रवाल, ओसवाल, श्रीमाल और खण्डेलवाल नाम भी आते हैं। ईलियट का भी यही खयाल है कि भारत की प्रायः सभी व्यापारी व वैश्य जातियों का उद्भव राजपूतों से हुवा | राजपूत लोग कौन थे, उनका उद्भव कहां से और किस प्रकार हुवा, यह प्रश्न बड़ा जटिल हैं । इस पर विचार करने की यहां आवश्यकता नहीं । इसी तरह ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र – इस चातुर्वर्ण्य का क्या अभिप्राय है, यह प्रश्न भी बहुत टेढ़ा है । पर रसेल, टाड, इलियट आदि विद्वानों ने वैश्य जातियों में प्रचलित जिन किंवदन्तियों का उल्लेख कर उनका मूल राजपूतों से बताया है, उसका ऐतिहासिक दृष्टि से यही अभिप्राय है, कि किसी समय इन जातियों के भी अपने राज्य थे, उनके भी अपने राजा थे । यद्यपि आज इनका कोई राज्य नहीं, ये शस्त्र धारण नहीं करतीं, पर किसी दिन ये अपना शासन स्वयं करती थीं और व्यापार के साथ-साथ शस्त्रधारण भी करती थीं । उनका अपना राज्य होने से उन्हें मूलत: चाहे क्षत्रिय कहिये चाहे राजपूत । इतिहास में वास्तविक घटनाओं पर दृष्टि रखने वाले के लिये इससे कोई भेद नहीं आता । पर 1. Tod, Rajasthan, Vol. 1, pp. 76, 109. 2. Elliot, Supplementary Glossary. p. 110. For Private and Personal Use Only
SR No.020021
Book TitleAgarwal Jati Ka Prachin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyaketu Vidyalankar
PublisherAkhil Bharatvarshiya Marwadi Agarwal Jatiya Kosh
Publication Year1938
Total Pages309
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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