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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अग्रवाल जाति का प्राचीन इतिहास २३४ उसका जीवन ही खतरे में पड़ गया । पर कुछ समय बाद वह स्वस्थ हो गया और विद्रोहियों को परास्त करने में समर्थ हुवा | अगले वर्ष रानी हुक्मां की मृत्यु हो गई । इससे दीवान नन्नूमल के शत्रुओं की शक्ति बढ़ गई। रानी खेमकौर की पार्टी ने उसे कैद कर लिया और कैदी के रूप में पटियाला ले आये । पर सिक्ख सरदारों में एक व्यक्ति और था, जो दीवान के वास्तविक महत्व को समझता था । यह थी, रानी राजेन्द्र कौर । उसने एक दल संगठित कर दीवान को कैद से मुक्त किया और फिर प्रधानमन्त्री के पद पर अधिष्ठित किया । 1 दीवान के कैद होने के समाचार से सारे राज्य में विद्रोह और अव्यवस्था मच गई थी । इस स्थिति में नन्नूमल ने अनुभव किया, कि राज्य में शान्ति स्थापित करने के लिये पटियाला के सरदारों पर निर्भर करना कठिन है । उसने मराठा सरदार धारराव के साथ बातचीत शुरू की । धारराव, उन दिनों दिल्ली तथा उसके समीपवर्ती प्रदेश पर अपना अधिकार जमा चुका था, और यमुना तथा सतलुज नदियों के बीच के प्रदेश के अनेक सिक्ख राज्य उसके साथ सन्धि कर चुके थे । धारराव की सहायता से नन्नूमल के विविध विद्रोही सरदारों को परास्त किया । धारराव तो कुछ दिनों में लौट गया, पर नन्नूमल को राज्य को व्यवस्थित व शान्त करने में असाधारण सफलता मिली । विद्रोही सरदार वश में आ गये और फिर से राजकीय कर व्यवस्थित रूप से वसूल होने लगे । महाराज अमरसिंह की मृत्यु के बाद जो विपत्तियां पटियाला राज्य पर आई, उन सब का दीवान नन्नूमल ने बड़ी सफलता से निवारण किया । For Private and Personal Use Only
SR No.020021
Book TitleAgarwal Jati Ka Prachin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyaketu Vidyalankar
PublisherAkhil Bharatvarshiya Marwadi Agarwal Jatiya Kosh
Publication Year1938
Total Pages309
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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