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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २२१ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भारतीय इतिहास के वैश्य राजा हर्षवर्धन का शासनकाल ६०६ ईस्वी से ६४७ ईस्वी तक है । इस वंश ने कुल ७८ वर्ष ( या दक्षिणी भारत में प्राप्त मंजुश्रीमूल कल्प की प्रति के अनुसार ११५ वर्ष ) तक राज्य किया । प्रसिद्ध चीनी यात्री नत्सांग ने भी, जो महाराज हर्षवर्धन की राजसभा में देर तक रहा था, इन राजाओं को वैश्य लिखा है । राज्यवर्धन और हर्षवर्धन के सम्बन्ध में मंजु श्री मूलकल्प की निम्नलिखित पंक्तियां उल्लेख योग्य हैं “उस समय मध्यदेश में र ( राज्यवर्धन ) नाम का राजा अत्यन्त प्रसिद्ध होगा । वह वैश्य जाति का होगा । वह शासन कार्य में अत्यन्त समर्थ तथा सोम नाम के राजा के समान ही होगा । उसका छोटा भाई ह (हर्षवर्धन ) एक ही वीर होगा । उसकी सेना बहुत बड़ी होगी । वह शूर, पराक्रमी तथा बड़ा प्रसिद्ध होगा । सोम ( शशांक ) राजा के विरुद्ध आक्रमण कर वह वैश्य राजा (हर्षवर्धन ) उसे परास्त करेगा । " सप्त्यष्टौ तथा श्रीरिण श्रीकण्ठावासिनस्तदा । आदित्यनामा वैश्यास्तु स्थानमीश्वरवासिनः ।।६१७ भविष्यति न सन्देहो अन्ते सर्वत्र भूपतिः हकाराख्यो नामतः प्रोक्तो सर्वभूमिनराधिपः ।। ६१८ मंजुश्रीमूलकल्प पृष्ठ ४५ I. भविष्यते च तदाकाले मध्यदेशे नृपो वरः । काराख्यस्तु विद्यात्मा वैश्य वृत्तिमचञ्चलः ।। ७१६ शासनेऽस्मिं तथा शक्त सोमाख्य ससमो नृपः । ७२० तस्याप्यनुजो ह्काराख्य एकवीरो भविष्यति For Private and Personal Use Only
SR No.020021
Book TitleAgarwal Jati Ka Prachin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyaketu Vidyalankar
PublisherAkhil Bharatvarshiya Marwadi Agarwal Jatiya Kosh
Publication Year1938
Total Pages309
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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