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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org अग्रवाल जाति का प्राचीन इतिहास २२० "उस समय दो बहुत धनी आदमी थे, जो विष्णु के पुत्र ये। उनमें से एक का नाम भ से शुरू होता था । वे दोनों मुख्य मन्त्री थे । वे दोनों अत्यन्य धनी, श्रीमान्, प्रसिद्ध और शासन कार्य में रत थे | • • आगे चल कर वे स्वयं स्वामी ( मनुजेश्वर ) हो गये, और उनमें से एक राजा ( भूपाल ) हो गया । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तदनन्तर, ७८ वर्ष तक तीन राजाओं ने राज्य किया । वे श्रीकण्ठ के निवासी थे । एक का नाम आदित्य था, वह वैश्य था और स्थाण्वीश्वर में रहता था । अन्त में ह ( हर्ष वर्धन ) नाम का राजा सब देशों का चक्रवतीं राजा ( सर्वभूमिनराधिपः ) हो गया । ' " 1 इस उद्धरण में थानेसर के वर्धन राजाओं का हाल दिया गया है। इन्हें स्पष्ट रूप से वैश्य लिखा हैं । इस वंश का प्रारम्भ आदित्य या आदित्यवर्धन से माना है, जिसकी वंशावली यह है राज्यवर्धन आदित्यवर्धन 1 प्रभाकरवर्धन हर्षवर्धन 1. विष्णु प्रभवौ तत्र महाभोगो धनिनो तदा / ६१४ मध्यमात् तौ भकाराद्यौ मन्त्रिमुख्यौ उभौ तदा । धनिनौ श्रमितौ ख्यातौ शासनेऽस्मि हिते रतौ ॥ ६१५ ततः परेण मंत्री भूपालौ जातौ मनुजेश्वरौ ॥ १६६ For Private and Personal Use Only
SR No.020021
Book TitleAgarwal Jati Ka Prachin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyaketu Vidyalankar
PublisherAkhil Bharatvarshiya Marwadi Agarwal Jatiya Kosh
Publication Year1938
Total Pages309
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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