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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अगरोहा का पतन और अन्त अगरोहा स्थित था । दुर्भाग्यवश तुंअर राजपूतों की प्राचीन वंशावलि उपलब्ध नहीं है, और अब तक की खोज से कोई ऐसे साधन प्राप्त नहीं हुवे हैं, जिनसे तोमारों के प्रारम्भिक इतिहास का पता चल सके । अन्यथा भाट गीतों के समरजीत को पहचानना संभव हो सकता । पर यह निश्चित है, कि तुंअर व तोमार राजपूतों ने अगरोहा को विजय किया और उस पर अपना अधिकार कर लिया। इसके बाद जब चौहान राजपूतों का उत्कर्ष हुवा और उन्होंने तोमारों को परास्त कर दिल्ली तथा उसके समीपवतीं प्रदेशों पर अपना अधिकार जमा लिया, तब अगरोहा भी तोमारों के साथ से निकल कर चौहानों के आधीन हो गया । ___ भारतीय इतिहास के प्रारम्भिक मध्यकाल में अगरोहा निश्चय ही तोमार और फिर चौहानों के आधीन रहा। कुछ अग्रवाल इसी काल में अगरोहा छोड़कर अन्य स्थानों पर बसने लगे। पर अगरोहा अभी उजड़ा नहीं था। अधिकांश अग्रवाल अभी अगरोहा में ही रहते थे । राजनैतिक सत्ता नष्ट हो जाने के बावजूद भी वहां उनकी अपनी बस्ती थी । दसवीं शताब्दी के अन्त में मुसलमानों के आक्रमण भारत पर शुरू हुवे । सन् एक हजार सैंतीस में महमूद गज़नवी के लड़के मसूद गज़नवी ने हांसी पर आक्रमण किया । हांसी अगरोहे के बहुत समीप है, और उन दिनों वहां एक बड़ा मशहूर दुर्ग था । मसूद ने उसका घेरा डाल दिया और उसे जीतने में समर्थ हुवा। पर अगरोहा गजनवी आक्रान्ताओं के आक्रमणों से बचा रहा। बारहवी सदी के अन्त में गौरी पठानों के आक्रमण शुरू हुए। इन्हीं आक्रमणों के समय में अगरोहा का वास्तविक रूप से विनाश हुवा। For Private and Personal Use Only
SR No.020021
Book TitleAgarwal Jati Ka Prachin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyaketu Vidyalankar
PublisherAkhil Bharatvarshiya Marwadi Agarwal Jatiya Kosh
Publication Year1938
Total Pages309
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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