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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ||૪|| www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उद्देशो समाप्त करवा कहे छे. आ प्रमाणे शास्त्रमां बतावेली विधिए श्री वर्द्धमानस्वामी जेओ चार ज्ञान युक्त छे, तेमणे अनेक प्रकारे नियणुं कर्या विना आचर्यो, कारण के ते प्रमाणे बीजो मुमुक्षु पण भगवानना दाखलाथी मोक्ष आपनार मार्गवडे आत्महितने आचरतो विचरे, आ प्रमाणे सुधर्मास्वामी जंबूस्वामीने कहे छे. ते हुं कहुं छं. जे वीर प्रभुना चरणनी सेवा करतां में सांभळ्युं छे. आ प्रमाणे सूत्रानुगम तथा सुत्रालापक निष्पन्न निक्षेप सूत्र स्पर्शिक नियुक्ति सहित वर्णव्यो छे. हवे नयोतुं वर्णन करे छे. नैगम संग्रह व्यवहार ऋजुसूत्र शब्द समभिरुढ एवंभूत ए प्रमाणे सामान्यथी ७ नय छे. ते संमतितर्क विगेरेमां लक्षणथी अने विधानथी विस्तारथी कह्या छे, माटे अहींया तेज नयोने ज्ञान क्रिया ए बने नयोमां समावीने समासथी कहीए बीए. आ आचारांग सूना अधिकारमां ज्ञान क्रिया एम वे नयोनो समावेश थाय छे, तेथी तथा ते ज्ञान क्रियाने आधिन मोक्ष होवाथी, अने मोक्ष माटे शाखनी प्रवृत्ति छे, एम जाणवुं, अने अहींआं ज्ञान तथा क्रिया परस्पर संबंध राखीनेज विवक्षित कार्य सिद्धिमां समर्थ छे, पण एकलं ज्ञान के एकली क्रिया समर्थ नथी, माटे अहीं ते बे ज्ञान क्रियां नयने समजावीए छीए. ज्ञान नयवाळानो अभिप्राय. ज्ञान प्रधान छे, पण क्रिया नहीं, कारण के समस्त (वधा) हेय पदार्थने त्यागवा, उपादेयने स्वीकारना, ए प्रवृत्ति ज्ञानने आधीन छे. तेज बतावे छे, के सारी रीते निश्चय करेला सम्य् ज्ञानथी प्रवर्त्तन करनारो अर्थ क्रियानो अर्थी पोतानुं कार्य बगाडतो नथी. कहां छे के. विज्ञप्तिः फलदा पुंसां न क्रिया फलदा मता । मिथ्याज्ञानात् प्रवर्त्तस्य फलासंवाददर्शनाद् ॥ १ ॥ For Private and Personal Use Only सूत्रम् [૧૪]
SR No.020012
Book TitleAcharanga Stram Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1935
Total Pages328
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size15 MB
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