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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagersuri Gyanmandir आचा०४ ॥८४५॥ जोइने तेमने खावा पीवामां अडचण न पडे तेवी रीते हमेशां पोते धीरे धीरे गोचरीने माटे चाले छे. [१०] सूत्रम् | अदुवा माहणं च समणं वा गाम पिण्डोलगं च अतिहिं वा; । सोवागमूसियारिं वा कुक्कुरं वावि विडियं पुरओ है। वित्तिच्छेयं वजन्तो तेसिमप्पत्तियं परिहरन्तो;। मंदं परक्कमे भगवं अहिंसमाणो धासमेसिस्था ॥१२॥ ८४५॥ अथवा ब्राह्मणने लाभ माटे उभेलो जाणीने तथा बौद्ध मतना साधु आजीविक [गोशाळाना मतना] साधु तथा परिव्राट तापस ४ अथवा पार्श्वनाथना अनुयायी जैन साधुमांथी कोइपण होय, अथवा गामना भीखारीओ जे होजरी भरवा माटे भटकता होय, अ-४ | थवा कोइ अतिथि [परोणा] मुसाफर होय, तथा चांडाळ के बीलाडी कूतरुं के कोइपण पाणी मोढा आगळ उभेलं होय तो [११] . तेमनी वृत्तिने छेदवा विना अने मनमांथी दुर्ध्यान काढीने तेमने जरा पण त्रास आप्या विना भगवान् मंद मंद चाले छे, तथा पर एवा कुंथुवा विगेरे नाना जंतुओने दुःख दीधा विना पोते गोचरीमा फरे छे. (१२) अवि सूइयं वा सुकं वा सीयं पिंडं पुराणकुम्मासं । अदु बुक्कतं पुलागं वा लपिंडे अलके दविए ॥१३॥ अवि झाइ से महावीरे आसणत्थे अकुक्कए झाणं । उड़े अहेतिरियं च पेहमाणे समाहिमपडिन्ने ॥१४॥ दहीं विगेरेथी भोजन भीजावेलु होय, तेमज वालचणा विगेरे सुकुं होय, अथवा ठंडु होय अथवा घणा दिवसना रांधेला जुना कुल्माप होय अथवा बुक्कस ते जुनुं धान्य के भात विगेरे होय' अथवा जुनो साथवो बोरकुट विगेरे होय, अथवा घणा | 2 | दिवस, भरेलुं गोरस अने घउना मंडक ( ढेबरां) होय, तथा जवना निष्पाच विगेरे पुलाक होय, ए प्रमाणे ठंडो उनो सारो For Private and Personal use only
SR No.020012
Book TitleAcharanga Stram Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1935
Total Pages328
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size15 MB
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