SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 48
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥ ८३३॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तथा बधो काळ पांच समितिओथी युक्त छे अने जे कइ दुःखना स्पर्शो आवे तो संयममां अरति लावता नथी तेम सुंदर भोगोमां रति लावता नथी एम बने परिषहमां समभाव धारीने संयम अनुष्ठानमां वर्ते छे. पोते कोइ पण जीवने दुःख न देवं, एवा माहण बनेला जरुर पडतां एक वे उत्तर आपता विचरे छे. (१०) ते भगवान महावीर साडा वार पक्ष वधारे एवा बार वरस ( बार वरस अने साडा बार पखवाडीयां ) सुधी एकला विचरता शून्यगृह विगेरेमां रहेता लोकोथी पूछाता के तमो कोण छो ? केम अहीं उभा छो अथवा क्यांथी आव्या छो. ते समये पोते मौन रहेता, तथा दुराचारीओ विगेरे एकला भटकतात्यां आवीने कोइ वखत रातमां अथवा दिवसमां पूछता. पण भगवाने उत्तर न आपवाथी क्रोधमां आवी भगवानने मौन देखी तेओ अज्ञानथी दृष्टि छवाइ जतां दंड मुक्की विगेरेथी मारीने पोतानुं अनार्यपणुं आचरता हता. पण भगवान तो समाधिमां रही धर्म ध्यानमा चित्त | राखीने सारी रीते सहेता हता. प्र०- भगवान केवा हता ? उ-प्रतिज्ञा रहित एटले तेनुं वेर लेवुं एवी इच्छा राखता नहोता. प्र० – ते आवेलाओ केत्री रीते पूछता हता ? उ० - अत्र कोण रहेलुं छे ? एम संकेत करीने दुराचारीओ अथवा काम करनाराओ पोताना साथीओनी राह जोइ भगवानने पूछता हता. त्रळी हंमेशां त्यां रहेला दुष्ट ध्यानवाळा पूछे छे. पण भगवान मौन | रहेला हता. पण कोइ वखतघणोज दोष थतो होय तो टाळवाने माटे थोडं बोलता पण हता. प्र० - केवी रीते ? उ० - हुं भिक्षु हुँ, आम बोलतां जो तेओ संमति आपे तो त्यां रहेता, पण ते आवेला दुष्टोनी इच्छानां विघ्न थतुं होय, तो क्रोधायमान थइने मोहांध | वनी वर्तमान लाभ देखनारा तुच्छ बुद्धिथी कहे के अमारा मुकामथी हमणां निरुळ, तो भगवान आ अप्रीतिनुं स्थान छे, एम For Private and Personal Use Only सूत्रम् ||८३३॥
SR No.020012
Book TitleAcharanga Stram Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1935
Total Pages328
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy