SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 46
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संबुज्झमाणे पुणरवि आसिसु भगवं उट्ठाए । निक्खम्म एगया राओवहि चंकमिया मुहत्तागं ॥६॥ सूत्रम् ॥८३१॥ 15 सयहिं तत्थुवसग्गा भीमा आसी अणेगरूवाय। संसप्पगाय जे पाणा अदुवा जे पक्खिणो उवचरन्ति ॥७॥18Insan अदु कुचरा उवचरन्ति गाम रक्खा यसत्तिहत्था य । अदु गामिया उवसग्गा इत्थी इगइया पुरिसा य ॥८॥ भगवान पोते प्रमाद रहित बनीने निद्रा पण वधारे लेता नथी. अने तेज प्रमाणे बार वरसमां अस्थिक गाममा व्यन्तरना उपसर्ग पछी कायोत्सर्गमा रहीने अन्तर्मुहूर्त सुधी स्वमो देखतां सुधी एकवार निद्रा करी हती त्यारपछी उठीने आत्माने कुशळ | अनुष्ठानमा प्रवर्ताचे छे अहींया पण पोते प्रतिज्ञा रहित छे. एटले पोते मनमा इच्छीने सुता नथी. (५) वळी ते वीर प्रभु जाणे छे के आ प्रमाद संसार भ्रमण माटे छे. एम जाणीने संयम उत्थानवडे उठीने विचरे छे. जो अन्दर । रहेतां निद्रा प्रमाद थाय तो त्यार्थी नीकळीने शियाळानी रात विगेरेमा खुल्ली जग्यामां मुहूर्त मात्र निद्रा प्रमाद दूर करवा ध्यानमा उभा रह्या. (६) बळी ज्यां आगळ उत्कुटुक आसन विगेरेथी आश्रय लेवाय तेवा स्थानमा अथवा ते स्थानोवडे ते भगवानने भय करावनारा अनेक जातिना ठन्ड ताप विगेरेथी अथवा अनुकूळ प्रतिकूलरूपे परिषह उपसर्गो थया तथा शून्य घर विगेरेमां अहिं नकुळ (साप नोळीग) विगेरे भगवान मांस विगेरे खाता हता, अथवा मसाण विगेरेमा गीध विगेरे पक्षीओ मांस खाता हता, (तो पण भगवान रागद्वेष करता नहोता.) (७) वळी कुचर ते चोर परदार लंपट विगेरे कोइ शून्य घर विगेरेमां भगवानने दुःख देता हता तथा गाम रक्षा करनारा कोटवाळ ACCESSORSCOCALSCRACROSS For Private and Personal Use Only
SR No.020012
Book TitleAcharanga Stram Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1935
Total Pages328
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy