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पढमे गहणं बीए धरणं, पगयं तु दबवत्थेणं एमेव होइ पायं, भावे पायं तु गुणधारी ॥ ३१५ ॥ आचा० पहेला उद्देशामां वस्त्रनी लेवानी विधि बतावी छे, बीजामा राखबानी विधि छे, नामनिष्पन्न निक्षेपामा वस्त्र एषणा छे, तेमा।
| सूत्रम् * वखनो नाम विगेरे चार प्रकारे निक्षेपो छे, नाम स्थापना मुगम छे, द्रव्य वस्त्र त्रण प्रकारनुं छे, पकेंद्रियथी बनेलं ते रु विगेरेर्नु ॥१०२२॥ बनावेलुं सुतराऊ कापड छे, विकलेंद्रियथी बनेलुं चीनांशुक (रेशमी) वस्त्र छे, पंचेंद्रियथी बनेलं ते कंबळ रत्न विगेरे छे, अने भाव ॥१०२२॥
वस्त्र अढार हजार शीलांग (संपूर्ण ब्रह्मचर्य) छे, पण अहों तो द्रव्य वस्खथी अधिकार छे, ते नियुक्तिकारे बतावेल छे, तेज
प्रमाणे वस्त्र माफक पात्रांनो चार प्रकारे निक्षेपो छे, एम मानीनेज आ गाथामा नियुक्तिकारे अनि टुंकाणमां पात्रांनो निक्षेपो P अडधी गाथामां बताव्यो छे, तेमां द्रव्य पात्र ते एकइंद्रिय विगेरेथी बनेलं, अने भावपात्र तो साधु पोनेज गुगधारी होय ते छे. हवे मूत्रानुगममा अस्खलितादि गुणयुक्त मूत्र वालधुंजाइए ते आहे
से मि. अभिकंखिज्जा वत्थं एसित्तए, से जं पुण वत्थं जाणिज्जा, तंजहा-जंगियं वा भंगियं वा सणियं वा पोत्तगं वा खोमियं वा तूलकडं वा, तहप्पगारं वत्वं वा जे निम्गंथे तरुणे जुगवं बलवं अप्पायके थिरसंघयणे से एगं वत्थं धारिजा नो बीयं जा निग्गंथी सा चत्तारिसंघाडीओ धारिजा, एगं दुहत्थवित्थारं दो तिहन्थवित्थाराओ एग चउहत्यवित्थारं, तहप्पगारेहिं बत्थेहि असंधिज्जमाणेहि, अह पच्छा एगमेगं संसिविज्जा ।। (मू०१४१)
ज्यारे ते साधुने वखनी जरूर पड़े, त्यारे आ प्रमाणे तपास करे, आ गियं-उंट विगेरेना उनन बनावेलुं छे, तथा भंगिक | ते विकलेंद्रियनी लानु (रेशमी) वस्त्र छे, साणय ते शण झालनी छाल विगेरेनुं बनावेलुं छे, पोत्तग ते ताड पाना पांदळां81
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