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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम् ॥१०२१॥ कक्खडाणि वा ८ ॥ (मू० १३९) आचा० कोइ जग्याए साधु शब्द सांभळे तो एम न बोले के भा सुंदर के के खराब छे, अथवा मांगलिक छे के अमांगलिक छे, पण तेवा शब्दो बोलवानी जरूर पडे तो पछी शोभनने शोभन अने अशोभनने अशोभन कहे, ए प्रमाणे रुप (वर्ण) पांचने आश्रयी वे ॥१०२१॥ 18| गंध सुरभि विगेरे तथा रस तीखा विगेरे पांच, अने कर्कश विगेरे आठ फरस आश्रयी पण विचारीने निरवध भाषा जरुर पडतां बोलवी. । से मिक्खू वा. वंता कोहं च माणं च माय च लोभं च अणुवीइ निहाभासी निसम्मभासी अतुरियभासी विवेगमासी समियाए संजए भासं भासिज्जा ५ एवं खलु० सया जइ (मु० १४०) तिबेमि २-१-४-२ भाषाध्ययनं चतुर्थम् २-१-४ उपर बधां मूत्रो कहीने छेवडनो सार कहे छे के ते साधु साध्वीए क्रोध मान माया लोभने दूर करी विचारी मुद्दानी वात निश्चय करीने धैयता राखी विवेकपूर्वक भाषा समिति युक्त पोते बनीने बोले आ भिक्षुनुं सर्वस्व छे. . चोधुं अध्ययन समाप्त धयुं. ___ चोथु कहीने पांचमु कहे छे, तेनो आ प्रमाणे संबंध छे, चोथामां भाषासमिति बतावी, त्यारपछी एषणासमिति कहेवाय छे. • ते वस्त्रनी अंदर रहेली (तेने आश्रयी ) कहे छे.... आ संबंधे आवेला आ अध्ययनना चार अनुयोगद्वारा उपक्रम विगेरे थाय छे, तेमां उपक्रमनी अंदर रहेल अध्ययनना अर्था| धिकारमा 'वस्त्र एषणा' बतावी छे, अने उद्देशानो अधिकार बताववा नियुक्तिकार कहे छे. For Private and Personal Use Only
SR No.020012
Book TitleAcharanga Stram Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1935
Total Pages328
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size15 MB
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