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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आवा० ॥ ९८८ ॥ www.kobatirth.org केवली वूया आयाणमेयं, अंतरा से वासे सिया पाणेसु पणएस वा बीएस वा हरि० उद० मट्टियाए वा अविद्धत्थाए, अह भिक्खू जं तह० अणेगाह० जाव नो पत्र० तओ सं० गा० दू० ॥ ( मू० ११७ ) भिक्षु ग्रामांतर जतां एम जाणे के ते मार्गमां जतां मैदान उलंगवामां केटलाक दिवसो लागशे, एटले एक आखो दिवस | अथवा वे त्रण चार पांच दिवसे ते मार्ग उलंघासे, तेवा मार्गे बीजो हुंको मार्ग मळतो होय तो तेवा उजड रस्ते जबुं नहि. कारके तेवा मार्गे जतां केवळी ज्ञानीए अनेक दोषो बताव्या छे, जेमके वखते वरसाद आवे तो पानी भराइ जाय, लीलग फूलण इथ जाय, लीलाघासनां बीज अंकुरा फुटी नीकळे, रस्तो कादश्थी (गाराथी) भराइ जाय, मार्ग मुझे नहि, माटे तेवा अनेक दिवसना मेदानवाळा मार्ग जनुं नहि. हवे नावने आश्रयी कहे छे से भ० वा गामा दुइज्जिज्जा ० अंतरा से नावासंतारिमे उदए सिया से जं पृण नावं जाणिज्जा असंजए अभिक्खुपडियाए किणिज्ज वा पामिच्छेज्ज वा नावाए वा नावं परिणामं कट्टु थालाओ वा नाव जलंसि ओगाहिज्जा जलाओ वा नावं थलंसि उकसिज्जा पुण्णं वां नावं डस्सिचिज्जा सन्नं वा नावं उप्पीला विज्जा तहध्वगारं नावं गार्मिणि वा अहेगा ० तिरियगामि० परं जोयण मेराए अद्धजोयणमेराए अप्पतरे वा भुज्जतरे वा नो दुरुहिज्जा गमणाए । से भिक्खू वा० पुत्रामेत्र तिरिच्छपाइमं नावं जाणिज्जा, जाणित्ता से तमयाए एगंतमत्रकमिज्जा २ भण्डगं पडिले हिज्जा २ एगओ भोयणभंडगं करिज्जा २ ससीसोवरीयं कार्यं पाए पमज्जिज्जा सागारं भत्तं पञ्चाक्वइज्जा, एगं पाये जले किया एवं पार्थ थले किच्चा तओ सं० नावं दुरुहिज्जा ।। ( मू० ११८ ) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only सूत्रम् ॥ ९८८ ॥
SR No.020012
Book TitleAcharanga Stram Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1935
Total Pages328
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size15 MB
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