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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥९८५॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गयेलां होय, अने ब्राह्मण श्रमण विगेरे मागण न आवेला होय, अथवा थोडा बखतमां आवत्राना न होय तो मागसर शुद १५ | सुधी त्यां रहेबुं. त्यारपछी गमे तेम होय तोपण त्यां रहेवुं नहि, पण जो दृष्टि न होय, कादव न श्रमण ब्राह्मण आव्या होय, आववाना होय, तो कार्तिकी पूर्णिमा पछी तुर्त विहार करवो. होय, मार्ग इंडां विनानो होय, हवे मार्गनी यतना कहे छेसे भिक्खू वा० गामणुगामं दृइज्जमाणे पुरओ जुगमायाए पेहमाणे दहूण तसे पाणे उद्ध पादं रीइज्जा साहहुँ पायं रीइज्जावितिरिच्छं वा कडे पायं रीइजा, सड़ परकमे संजयामेव परिकमिज्जानो उज्जुयं गच्छिना, तओ संजियामेव गामणुगामं दुइज्जिज्जा ।। से भिक्खू वा० गामा० दृइज्जमाणे अंतरा से पाणाणि वा बी० हरि० उदए वा मट्टिआ वा अविद्वत् स परकमे जाव नो उज्जयं गच्छिजा, तओ संजया० गामा० दृइज्जिज्जा | ( मू० ११४ ) भिक्षु बीजे गाम जतां मोढा आगळ युगमात्र (चार हाथ प्रमाण ) गाडाना उद्धि (घसारा) ना आहारे भूभाग ( जमीन ) देखतो चाले, त्यां मार्गमां त्रस जीवो जे पतंग विगेरे छे, ते पगने अडकीने नीकळे, अथवा पगना तळीयां नीचे अडकीने नीकळे तो ते जीवोनी रक्षा खातर शरीरमां शक्ति होय त्यां सुधी बीजे मार्गे जनुं, पण बीजो रस्तो के जवानी शक्ति न होय, तो ते रस्ते जतां ज्यारे तेवां जंतुओ पग पासे आवे त्यारे ते त्यां पग संभाळीने मुकवो के ते चगद्दाइ न जाय, एटले ज्यारे सामे आवे त्यारे तेने | पग पग साथै अथडावा देवां नहीं, पण जो पग नीचे दबाइ जाय तेम होयतो नीचे देखीने ते जग्याए पगन मुकवां, अथवा पगनी एडी मुकीने चालबुं, अथवा पग वांको करीने चालवं, आ प्रमाणे एक गामथी बीजे गाम जीव जंतुनी रक्षा करतां जर्बु. बळी साधुने एक गामथी बीजे गाम जतां मार्गमां नाना जीव जंतु बीज हरियाणी (लीळं घास) पाणी, माटी अथवा रस्तो For Private and Personal Use Only सूत्रम् ॥ ९८५ ॥
SR No.020012
Book TitleAcharanga Stram Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1935
Total Pages328
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size15 MB
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