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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥ ९३६.५ ** www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अग्यारमो उद्देशो. दशमो उद्देशो को हवे अग्यारमो कहे छे, तेनो आ प्रमाणे संबंध छे, गया उद्देशामां मळेला पिंडनो (लेवा न लेवा तथा वापरवा परठवत्रा संबंधी) विधि कथो, तेनेज अहों विशेषयी कहे छे. भिक्खागा नामेगे एमासु समाणे वा वसमाणे वा गामाणुगामं वा दुइज्जमाणे मणुन्नं भोयणजायं लभित्ता से भिक्खू गिलाइ, से हंदइ णं तस्साहरह, से य भिक्खू नो भुंजिज्जा तुमं चेत्र णं भुंजिज्जासि, से एगइओ भोक्खामित्तिक पलि उंचिय २ आलोइज्जा, तंजहा इमे पिंडे इमे लोए इमे तित्ते इसे कइयए इसे कसाए इमे अंबिले इमे महुरे, नो खलु इत्तो किंचि गिलाणस्स सयइत्ति माइहाणं संफासे, नो एवं करिज्जा, तहाठियं आलोड़ज्जा तहाठियं गिलाणस्स सयइति, तं तित्तयं तितत्ति वा कडुयं कसायं कसायं अंचिलं अंबिलं महुरं महुरं० ( मू० ६० ) ( भिक्षा माटे विहार करे शुद्ध गोचरी ले माटे भिक्षण शीला ) ते साधुओ समान आचार विचार व्यवहारवाळा एकज जग्याए रखा होय, अथवा बहार गामथी विहार करता आव्या होय, ( वा शब्दथी असमान आचारवळा पण भेळा समजवा ) तेमां कोइ साधु मांदो पडे, तो भिक्षामां फरनारा साधुओ गोचरीमां मनोज्ञ भोजननो लाभ थतां बीजा सोबती साधुने कहे के आ सारं भोजन तमे लेइने मांदा साधुने आपो, अने जो ते न खाय, तो तमेज खाइ ले जो, आ प्रमाणे मांदानी वेयावच्य करनार ने कहेतां ते साधु मांदा माटे आहार लेइने विचार करे के, आ सारं मिष्टान विगेरे स्वादिष्ट वस्तु हुं खाइश, पछी ते मांदा पासे जड़ने सारो For Private and Personal Use Only सूत्रम् ॥९३६॥
SR No.020012
Book TitleAcharanga Stram Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1935
Total Pages328
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size15 MB
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