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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सत्रम | ते बायो कोपायमान थतां झगडो करशे. पछी ते रीसमा आवीने दंड (लाकडी) थी केरीना गोटला विगेरेथी मुकाथी माटीना ढेफाथी आचा०, कपाल [घडाना ठीकरा] थी साधुने घायल करशे, अथवा ठंडा पाणीथी सिंचशे, धूळथी कपडां बगाडशे, आ दोषो तो जगाना संकोचने लीधे थाय छे, पण ओछी रसोइने लीधे आवा दोषो थाय छे. अशुद्ध आहार खावानो वखत आवशे, कारण के थोडं 11८८६॥ ४ रांधेलं अने भिक्षु वधारे होय छे, त्यारे घरधणी एम समजे के मारं नाम सांभळीने आ लोको आव्या छे, माटे मारे कोइपण रीते लपण तेमने आप, जोइए, ए, विचारीने साधुने रांधीने पण आपशे, तेथी दोषित आहार खावानो प्रसंग आवे, अथवा कोइ वखत दानदेनारने बीजा बावा विगेरेने आपवानी इच्छा होय अने वचमां साधु आवीने ले, तेथी घरधणीने तथा बावा विगेरेने खोटुं लागे, माटे आवा दोषोने जाणीने उत्तम साधुए आवी संखडिमां घणा लोको भरायेला होय, त्यां भोजननी तंगीने लीधे अथवा | धक्कामुकीना कारणे संखडिनी बुद्धिए त्यां जवु नहि, हवे सामान्यथी पिंडनी शंकाने आश्रयी कहे छे. से भिक्खू वा २ जाव समाणे से जं पुण जाणिज्जा असणं वा ४ एसणिज्जे सिया अणेसणिजे सिया वितिगिंछसमावन्नेण अप्पाणेण असमाहडाए लेसाए तहण्पगारं असणं वा ४ लाभे संते नो पडिगाहिजा ॥ (मू० १८] ते भिक्षु गृहस्थना घरमा गये लो एपणीय आहरने पण शंकावाळू जाणे, के आ उद्गमादि दोषोथी दुष्ट छे. तो साधए तेवी | शंका थया पछी तेवू लेवू नहि, कारण के "जं संके तं समावजे," ज्यां शंका थाय त्यां ते भोजन लेवू नहि, (आ मुत्रमा एपणीय अथवा अनेषणीय चार प्रकारनो आहार होय, पण पोताने केटलांक कारणोथी मालुम पडे के ते उद्गम दोष विगेरेथी युक्त छे. आवी ज्यां पोतानी लेश्या थइ तो उत्तम साधुए ते लेवु नहि.) हवे गच्छमांथी नीळेकला साधुओने आश्रयी मूत्र कहे छे. For Private and Personal Use Only
SR No.020012
Book TitleAcharanga Stram Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1935
Total Pages328
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size15 MB
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