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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie आचा०18 कातर बने छ, अथवा विषयना रसीआ कातर (बीकण) बने छे. प्र०-तेओ कोण ठे ? अने शुं करे छे ? उ-तेओ ढीला मनवाळा बनीने व्रतोना विध्वंसक बने छे, आq अढार हजार सूत्रम् ॥७०३॥ शीलांगवाळु ब्रह्मचर्य कोण धारी शके! आQ विचारीने द्रव्य लिंग अथवा भावलिंग त्यजीने जीवोना विराधक बने छे, ते लिंग ॥७०३॥ 8 त्यजेलानु पछी शुं थाय छे ते कहे छे. (अथनो अर्थ पछी छे) केटलाक व्रत लइने भांगी नांखे छे, तेमने (पापना उदयथी) वखतेल | अंतर्मुहुर्त्तमांज मरण आवे छे, केटलाकनी पापरुप निंदा थाय छे, पोताना साधु के बीजा साधुओमां तेनी अपकीर्ति थाय छे, ते कहे छे, ते आ पतित साधु मसाणना लाकडा जेवो भोगनो अभिलाषी दीक्षा ले छे, अने मुकी दे छे माटे तेनो विश्वास न करवो 31 कारणके तेने अकर्तव्यनुं भान नथी ? कां छे केः परलोक विरुद्धानि, कुर्वाणं दूरतस्त्यजेत् ॥ आत्मानं यो न सधत्ते, सोऽन्यस्मै स्यात् कथं हितः ॥१॥ जे परलोक विरुद्ध अकृत्य करे छे, तेने दूरथी त्यजबो, जे आत्माने चारित्रमा स्थिर नथी राखतो, ते बीजाने हितकारक केवी रीते थाय ? विगेरे समजवु.. वा अथवा मूत्र वडेज तेनी अश्लाघा बताववा कहे छे, ते आ साधु बनीने विविध रीते भमतो साधुपणाथी भ्रष्ट थयेलो छे. | वीप्सा वडे अत्यंत जुगुप्सा (निंदा) बतावे छे. वळी, (गुरु शिष्यने कहे छे.) तमे जुओ. कर्मनी प्रबळता केवी छ ? के, जेमन नशीब फुटेलुं छे, तेवा उद्युतविहारी (उत्तम साधु) साथे रहेचा छतां पण, हजु तेओ शिथिळ विहार बनी रह्या छे, तथा संयम अ-18 नुष्ठान वडे विनयशील बनेला साथे रहीने तेश्रो निर्दय बनेला पाप अनुष्ठान करनारा छे, तथा विरत साथे अविरत,, द्रव्य, भूत साथे । BARASARSA AKAR For Private and Personal Use Only
SR No.020011
Book TitleAcharanga Stram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1934
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size10 MB
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