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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम् RS ॥७०१॥ आचा वसहा कायरा जणा लूसगा भवंति अहमेगेसिं सिलोए पावए भवइ, से समणो भवित्ता विब्भते २ पासहेगे समन्नागएहि सह असमन्नागए नममाणेहि अनममाणे विरएहिं अवि॥७०१॥ रए दविएहिं अदविए अभिसमिच्चा पंडिए मेहावी निट्ठियह वीरे आगमेणं सया परिक्कमि जासि तिबेमि ( सू० १९३ ) इति धूताध्ययने चतुर्थ उद्देशकः ॥ ६-४ ॥ केटलाक साधुओ तत्व समजीने सम्यग उत्थानथी तैयार थइ वीर माफक वर्त्तता पाछळथी पाणीनी हिंसा करनारा थाय छे. प०-ते केवी रीते तैयार थयेल हता ? उ०-ते विचारे छे के हे भाइ! मारे आ स्वार्थमां तत्पर एवा माता पिता पुत्र कलत्र &(स्त्री) विगेरे जेओ परमार्थ द्रष्टिए जोता अनर्थ रुप छे. तेमनी जोडे हुं शुं करीश ? कारण के तेओ मारुं कांइपण काय करवू के P रोग दूर करवामां समर्थ नथी, तेथी तेनावडे हुं शुं करीश ? एम जाणीने दीक्षा ले छे. अथवा कोइ दीक्षा लेनारने कोइए कयु. के हे भाइ ! रेतीना कोळीआ खावाजेवी निःसार दीक्षा लेवा वढे शुं करीश ? पण पूर्वना भाग्ये मळेलु भोजन विगेरे (सुखेथी) भोगव एम कहेतां ते दीक्षा लेनार वैराग्यथी रंगायलो होवाथी बोले, के हे बन्धो ! हुं आ भोजन विगेरेथी हवे शुं करीश ? में आ संसारमा भमतां अनेकवार भोगव्यु, तो पण तृप्ति न थइ, तो हमणां आ भवमा शुं थवानुं छे ? ए प्रमाणे विचारता केटलाक पुरुषो संसार स्वभावने जाणनारा दीक्षा लेवा तैयार थइने मावाप तथा बीजां सगांने तथा धन धान्य हिरण्य बे पगवाळां दास दासी तथा 8 ट्रचार पगवाळां पशु विगेरेने छोडवामां (सिंह माफक) वीर माफक आचरण करनारा बनीने योग्य रीते संयम अनुष्ठानमां तत्पर ANA UALCUGE For Private and Personal Use Only
SR No.020011
Book TitleAcharanga Stram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1934
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size10 MB
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