SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 95
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ECO- सूत्रम ७००॥ 'आमां शुं दोष छे! कारणके शरीर विना धर्म बनी शके नहीं; माटे धर्मना आधाररुष शरीरने यत्नाथी पाळg जोइए' को छे के. आचा शरीरं धर्मसंयुक्तं, रक्षणीयं प्रयत्नतः । शरीराज्जायते धर्मो, यथा बोजात्सदंकुरः ॥१॥ धर्मथी जोडायलं शरीर प्रयत्नथी बचाव, कारणके जेम बीज होय, तो सारो अंकुरो थाय, तेम शरीर ( सारं ) होय, तो ॥७००॥ धर्म थाय छे, (त्यारे आचार्य ने शीखामण आपे के हे भव्य !) तुं शा माटे एबुं बोले छे ? 8 सांभळ ! धर्म छे, ते घोर भयानक छे, कारण के बधा आश्रवोनो तेमां निरोध छे, अने तेथी ते दुरनुचर छे, एवं तीर्थकर विगेरेए उदीरित (कहेलु) छे, तेवा अध्यवसायवालो तुं बन, अने एवा उत्तम संयम अनुष्ठाननी अवगणना जे करे छे (णं वाक्यनी चोभा माटे छे) अने सावध अनुष्ठान करे, ते तीर्थकर गणधरना उपदेशथी बहार जइ स्वेच्छाथी वर्ते छे... H -कोण एवो होय ? उ०-उपर बतावेलो अधर्मार्थी बाळ आरंभनो अर्थी बनीने प्राणीओनो घात करे, करावे हणनारने IP अनुमोदनारो धर्मनी अवगणना करनागे, तथा काम भोगनां खेद पामेलो (कामांध) विविध प्रकारे तर्द (हिंसा) करनारो (तर्द धा8/तुनो अर्थ हिंसा छे) अथवा संयममा प्रतिकूल ते वितर्द छे. एवा स्वरुपवाळो बाळ साधु जिनेश्वरे कहेलो छे. एवं मुधर्मास्वामी पोताना शिष्योने कहे छे. के तुं मेधावी छे. माटे धर्मने जाण, वळी हवे पछी- पण हुं कहुं छुः ते बतावे छे. किमणेण भो ! जणेण करिस्सामित्ति मन्नमाणे एवं एगे वइत्ता मायरं पियरं हिच्चा नायओ यपरिग्गहं वीरायमाणा समुहाए अविहिंसा सत्वया दंता पस्स दीणे उप्पइए पडिवयमाणे बार CAROORS For Private and Personal Use Only
SR No.020011
Book TitleAcharanga Stram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1934
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy