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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥६४१॥ www.kobatirth.org घुताख्य नामनुं छहुं अध्ययन. पांचमुं अध्ययन कहं, हवे छर्छु अध्ययन कहे छे, तेनो आ प्रमाणे संबंध छे. गया अध्ययनमां लोकमां सारभूत संयम अने मोक्ष बताव्यो छे, अने ते निःसंगता सिवाय संयम न होय, तथा कर्म दूर कर्या विना मोक्ष न थाय. तेथी कर्म दूर करवा आ धुत ते कर्म धानुं तावत्रा कहे छे, आ संबंधे आवेला धुत नामना अध्ययनना चार अनुयोग द्वार थाय छे, तेमां प्रथम उपक्रम छे. ते उपक्रममां अर्थाधिकार वे भेदे छे, अध्ययननो अर्थ अधिकार अने उद्देशानो अर्थाधिकार छे, तेमां अध्ययननो अधिकार १ला अध्ययनमां कहेल छे, अने उद्देशानो अर्थाधिकार कहेवा नियुक्तिकार कहे छे, मेनियगविणणा, कम्माणं वितियए तइयगंमि । उवगरणं सरिराणं चउत्थए गारवतिगस्स ॥ २५० ॥ पहेला उद्देशामां पोताना जे सगां छे, तेओनुं विधून न ( मोह त्याग) करवो जोइए. बीजा उद्देशामां घातिकर्मने दूर करवां, त्रीजामां उपकरण शरीरने, अने चोथामां त्रण गारवने दूर करवा तथा उपसर्ग के सन्मान थाय, तोपण रागद्वेश न करवो, तथा साधुओए (पूर्वे) ते प्रमाणे कर्म विगेरे धोयां छे, ते आ पांचमा उद्देशामां बतावे छे. आ प्रमाणे अर्थाधिकार बतावीने निक्षेपो | कहे छे, ते त्रण प्रकारनो छे, ओघ निष्पन्नमां अध्ययन छे, नाम निष्पक्षमां धुत नाम छे तेना चार प्रकारे निक्षेपा छे, तेमां सुग|मनाम स्थापना छोडीने द्रव्य अने भाव बतावत्रा अडधी (पूरी) गाथा कड़े छे. उवसग्गा सम्माणयविआणि पंचमंमिउसे । दव्वधुयं वत्थाई, भावधुयं कम्म अविहं ॥ २५९ ॥ For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम् ॥६४१॥
SR No.020011
Book TitleAcharanga Stram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1934
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size10 MB
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