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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥६३७॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कक्खडे न मउए न गरुए न लहुए न उन्हे न निद्धे न लुक्खे न काऊ न रुहे न संगे न इत्थी न पुरिसे न अन्नहा परिने सन्ने उबमा न विजए, अरूवी सत्ता, अपयस्स पयं नत्थि, ( सू० १\१० ) जाति (जन्म) अने मरणना मार्गना उपादान कारणरूप कर्मने ते केवळी साधु उलंघे छे, अर्थात् वधां कर्मेनों क्षय करे छे, अने कर्म क्षय थवाथी शुं गुण थाय छे, ते कहे छे, विविध प्रकारे प्रधान पुरुषार्थपणे रचेलां शास्त्रोना विषयथी तप अने संयम अ| नुष्ठाननो विषय अंते मोक्ष आपनार कह्यो छे, ते मोक्ष वधा कर्मना क्षयरूप छे, अथवा जे स्थानमां मोक्षना जीवो [ सिद्ध भगतो ] रहेला छे, ते स्थान जे आकाश प्रदेशमां रहेल छे, तेमां पोते रत छे. (मूत्रमां व्याख्यातनो अर्थ मोक्ष लीधो छे) अने त्यां पोते | अत्यंत एकांत बाधा रहित सुखवाला छे, अने क्षायिक ज्ञान दर्शनरूप संपदाथी युक्त बनेला अनंत काळ रहेवाना छे - ( नमुत्थुणं मां सिव मयल मरुय मणंत मुक्खेय मन्त्रा बाह मपुणरावित्ति सिद्धि गइ नाम धेयं ठाणं संपत्ताणं नो अर्थ विचारवो.) प्र०—त्यां केवी रीते रहेला छे? ते कहे छे त्यां शब्दोनी प्रवृत्ति नथी, अर्थात शब्दोथी कद्देवाय एवी त्यां कोइ पण अवस्था नथी, ते बतावे छे, 'सव्वे' संपूर्ण स्वरो ते अध्ययन (भणवानुं भणाववानुं जेम अहीं छे, तेम त्यां वाच्य वाचक संबन्धमा उच्चारण | पण नथी, कारण के शब्दो तो रुप रस गंध अने स्पर्श समजाववामां कोइ पण कारणे संकेत काळमां ग्रहण कर्या होय, त्यारे अथवा | तेनी तुलनामां प्रवर्ते छे, पण त्यां सिद्धोने शब्द विगेरेनी प्रवृत्ति नथी. एथीज मोक्ष अवस्था शब्दोथी कहेवाय तेम नथी; फक्त For Private and Personal Use Only सूत्रम् ॥६३७॥
SR No.020011
Book TitleAcharanga Stram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1934
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size10 MB
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