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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir IN www.kobatirth.org घणा तपे संलेखना थती होय, ते अहीं ग्रहण न करे, पण ग्लान साधुने तेटलो काळ स्थिति न रहे, माटे तेवी टुंका काळनी आचा० * अनुपूर्वी वाळी द्रव्य संलेखना माटे आहारने रोके, आवी द्रव्य संलेखना करीने बीजुं शुं करे ? ते कहे छे: । बेत्रण चार पांच उपवास विगेरेनो अनुक्रमे तप करीने आहारनो संक्षेप करे, अने कषायोने ओछा करीने शरीरनो मोह ॥७७८॥ 18 छोडे. कषायो हमेशां ओछा करवा जोइए. पण आ संलेखनामां तो अवश्ये विशेष प्रकारे ओछा करवा. एथी तेमने विशेषथी IP७७८॥ ४ ओछा करी सम्यक्प्रकारे स्थापन कयु छे. शरीर (अर्चा) जेणे तेवो मुनि “ समाहित अर्च" छे. (नियमित कायना व्यापारवाळो ४ छे,) अथवा अर्ध्या ते लेश्या छे, ते लेश्याने सम्यक् रीते स्थापी छे माटे अति विशुद्ध अध्यवसाय वालो पोते बन्यो छे, अथवा अर्ध्या ते क्रोधादि अध्यवसाय रुप ज्वाळाने शांत करवाथी समाहित अर्ध्या वाळो छे, तेवा साधुए कर्म क्षय रुप फळ ( तेने क प्रत्यय लगाडवाथी फलक ययुं ) ने संसार भ्रमण रुप आपदामां अर्थ ( प्रयोजन वाळो छे माटे ते फळक आपद्भर्थी कदेवाय छे. अथवा फलक (पाटीया)ने बने बाजुथी वांसला विगेरेथी सरखं करवा छोले तेम अहीं बाह्य अभ्यंतर अवकृष्ट थवाथी [ आर्ष नचन प्रमाणे विग्रह करतां ] 'फलगावयही' छे, अथवा दुर्वचन [ महेणां ] रुप बांसलाथी छोलवा छतां कषायना अभावथी फलक 8. माफक रहे छे, तेवा स्वभावथी पोते 'फलकावस्थायी' छ, अर्थात् पोते 'वासी चन्दन कल्प' जेवो छ, [आ प्रमाणे मागधी सूत्रना अर्थ कर्या, कर्म क्षय रुप फळनो अर्थी, ते संसार भ्रमणनी आपदामांथी छुटवानो अर्थी, तथा क्रोधादिना ओछा थवाथी पाटीया जेवो मध्यस्थ रागद्वेष रहित बताव्यो] आवो उत्तम साधु प्रतिदिन साकार भक्त प्रत्याख्यान वाळो छे अने घणो बळवान रोग आवतां शीघ्र मरण नो उद्यम करनार बनी अभि निवृत्त अर्चवाळो एटले शरीर संताप रहित बने, धैर्य तथा संघयण विगे For Private and Personal Use Only
SR No.020011
Book TitleAcharanga Stram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1934
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size10 MB
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