SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 17
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥६२२॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir निष्कंपता अने तेने श्रुत ज्ञाननी आधारता थाय छे, अथवा स्वर्ग मोक्ष विगेरेनी उत्तम गति मळे छे, तेने जुओ ! अथवा संयममां प्रयत्न (न) करनारने उपग्ना उत्तम गुणो विना पासत्था विगेरेनी गति जे बधा लोकोने हांसी रुप छे. ते अथवा अधम स्थानी गति मळे छे. ते तमे देखो ! आ प्रमाणे संयम पाळनार ने प्रमाद करनार साधुनी उंच नीच गतिने जाणीने पांच प्रकारना सारा आचारमां तमारे प्रवर्त्तन करवुं, पण जे चारित्र लेवामां प्रमाद करे तेनी नीच गति थाय तेथी शुं समजवुं, ते कहे छे, के जेओ असंयममां बाल भावमां रमेला छे, जे सुगति सकल कल्याणना आधाररूप छे, तेने न मेळवी शके, अर्थात् हे शिष्य ! तुं दीक्षा लइने बाळ चेष्टा माफक कुकृत्य न करीश ! ते बाल जेवो आचार शाक्य कपिल विगेरेना मतने माननारा आचरे छे, अने बोले छे, के नित्य, अने अमूर्त आत्मा होवाथी आकाश माफक तेनो अति पातज नथी ! अथवा वृक्ष छेदतां के वाळतां आकाशनो भेद | के बळबुं थतुं नथी, तेमज शरीर विकारी छे. तेने घा विगेरे थतां अविकारी आत्माने कंइ पण थतुं नथी, तेओ कहे छे के. न जायते न म्रियते कदाचिन्नायं भृत्वा भवितेति ॥ आत्मा जन्मे नहीं, तेम मरतो पण नथी, कोइ पण दिवस आ थइने थवानो नथी ! (जेवो छे तेवोज रहेवानो छे) नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि, नैनं दहति पावकः । नचैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः ॥ १ ॥ जीवने शस्त्रो छेदे नही, अग्नि बाळे नहीं, पाणी भींजावे नहीं, तेम पत्रन शोषण करतो नथी. अच्छेयोऽयमभेद्योयम विकारी स उच्यते । नित्यः सततगः स्थाणुरचलोऽयं सनातनः ॥ For Private and Personal Use Only सूत्रम ॥६२२॥
SR No.020011
Book TitleAcharanga Stram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1934
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy