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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie द टुंक बुद्धियी शंका थाय, ते समये ते वस्तु खोटी अथवा साची विचारी होय, तो तेणे खोटी विचारेली होवाथी खोटा विचारने है आचा० लीधे अशुभ अशुभ अध्यवसाय होवाथी ते मिथ्यात्व छे, कारण के जेवी शंका करे तेवोज भाव मेळवे, ए, वचन छे, (६) अथवा सूत्रम् सम्यक् माननारने बीजी रीते खुलासो करे छे, शमिनो भाव शमिता छे ते शमिताने माननारो शुभ अध्यवसायवाळो उत्तर कालमा | ॥६२१॥ पण उपशमवाळोज रहे छे, अने चीको तो शमिताने मानवा छतां कषायना उदयथी अशमिता थाय छे, एज प्रमाणे बीजा भांगामां सम्यक् शब्दनी योजना करची, के सारं विचारे तो सारं फळ मेळवे, तेज प्रमाणे सारुं नरमुं तेनो विवेक विचारतो बीजाने पण उपदेश देवाने समर्थ थाय छे, का छे के, आगममां मति परिणत थवाथी यथायोग्य पदार्थनग स्वभाव बताववायी आ योग्य छे,आ अयोग्य छे, एवं विचारतो विद्वान बीजा नहि विचारताने पण समजावे छे, एटले गाडरना टोला माफक एक पछी एक जेम दोडे & तेम कोइ विना विचारनो शंकावाळो होय, तेने कई के हे भद्र ! तुं मध्यस्थता राखीने निर्मळ भावथी विचार के जिनेश्वरनुं कहेलं है जीवादितत्व विचार युक्तिने योग्य छे के नहीं ? ते आंखो वींचीने विचार, अथवा संयने सारी रीते पाळनारो होय, ते संयम सारी 8 रीते न पाळनारने कहे, के हे भद्र ! सम्यग् भाव पामीने हवे संयममा सारो रीते उद्यम कर ! शुं आलंबीने ? उ०-पूर्वे कहेला प्रकारे ते संयममां कर्म संतति क्षय करवा रुप जे संधि छे. ते जो संयम सारो पाले तो, कर्म दूर कराय तेम छे, आ कर्म संतति तेसिवाय बीजी रीते क्षय थाय तेम नथी. वळी सारीरीते संयम पाळनारने शुं लाभ थाय, ते कहे छे, 'से'-ते सम्यक् रीते दीक्षा लेवाने तैयार थएलाने शंका रहित धर्म श्रद्धा होवाथी चारित्र लइ गुरुकुल वासमा रहेवाथी अथवा गुरुनी आज्ञामां वर्त्तवाथी जे गति ट्रयाय छे, अथवा जे पदवि प्राप्त थाय छे, तेने हे शिष्यो! तमे सारो रीते जुओ! बधा लोकमां प्रशंसा, ज्ञानदर्शनमा स्थिरता चारित्रमा उन For Private and Personal Use Only
SR No.020011
Book TitleAcharanga Stram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1934
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size10 MB
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