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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir AE%- आचा० ४ जिनेश्वरे कहेल; ते फरी अनित्य केम थाय ? अथवा अनित्य ते, नित्य केम थाय ? कारणके, ते बन्ने परस्पर विरोधी छे.. सूत्रम् ते प्रमाणे अपच्युत अनुप्मन स्थिर एक स्वभाववाढं नित्य छे, अने तेथी उलटुं दरेक क्षणे नाश पामनारुं अनित्य छ, विगेरे ॥६१९॥ असम्यक्भावने पामे छे, पण ते एवं विचारतो नथी, के अनंत धर्मवाळी अने बधा नयना समूहथी युक्त वस्तु छे, ते मंद बुद्धिवा- ॥६१९॥ ळाने ते मानवु अति गहन होवाथी अशक्य छे, पण श्रद्धाथी मानवा योग्य छे, पण हेतुथी क्षोभायमान न थकुं, का छे केः सर्वेर्नयर्नियतनगमसंग्रहायेरेकैकशो विहिततीर्थिकोशासनैर्यत् ॥ निष्ठां गतं बहुविधै गमपर्ययस्तैः श्रद्धेयमेव वचनं न तु हेतुगम्यम् ॥ (इत्यादि) बधा नयोबडे एटले नैगम संग्रह विगेरे अने कथा नियत एक एक अंशथी अन्य तीर्थीक शासनवाळाए बतावेल जे बहु प्रकारना गमपर्यायोवडे संपूर्णता पामेलं तमारुं वचन श्रद्धा करवा योग्य छे. पण त्यां हेतुथी जाणवा योग्य नथी, जेथी विचार के हेतुतो एक नयना अभिप्राय प्रमाणे वर्ते छे. तथा एक धर्मने साधे छे, पण बधा धर्मने साथे साधनारने हेतुनो असंभव छे, (तेथी तेने शङ्का थाय छे.)(२)वळी विचित्र भावनाने बतावे छे, के कोइ मिथ्यात्सना लेशथी मुझाएलाने शङ्का Hथाय के शब्द पुद्गलनो केवीरीते बने एवं उलटुं मानीने मिथ्यात्वना परमाणुभोना उपशमपणाथी पछीथी शंका विगेरे गुरुना उपदेथी। दूर थतां ते श्रद्धावालो थाय छे; के जो शब्द पुद्गलनो बनेलो न होय तो तेनो करेलो अनुग्रह अथवा उपघात कान उपर केवी रीते || थाय ? कारण के आकाश माफक शब्द अमूर्न होय तो कानने कांइ पण न थाय एम समजीने सम्यक्त्व पामे छे (३) कोइने आग-18/ SARALABAR व-कलावन For Private and Personal Use Only
SR No.020011
Book TitleAcharanga Stram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1934
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size10 MB
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