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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धर्म कहे; अथवा आत्मानी अशातना वे प्रकारे छे. द्रव्यथी तथा भावथी, द्रन्यथी जेम, आहार उपकरण विगेरे द्रव्यनी काल अति सूत्रम् पातादि संबंधी आशातना (बाधा) न थाय; तेम कहे. (लोकोने जमवानो वखत होय; तेटली मोडी वार सुधी कथा कहे; तो, लो॥७१३॥॥कोमे शरमथी न उठतां जमतां अंतराय थाय; अथवा शिष्योने गोचरी लावतां बचतां मोडु थतां, पोताने तथा वाळवृद्ध तपस्वी 8/॥७१३॥ 4 मांदाने काळ उल्लंघतां बाधा थाय) ते आहार विगेरे द्रव्यती बाधायी पोताना शरीरने पण पीडा थाय; तेथी भाव मलिन थता | भावाशातना पण थाय, अथवा कहेतां गात्र भंग रुप भाव आशातना न थाय तेम कहे; तथा सांभळनारनी हीलना (निंदा) न करे; ४ के, सांभळनारने क्रोध चडतां आहार उपकरण अथवा साधुना शरीरनी कोइ पण रीते पीडा करवामां तत्पर थाय तेम कथा न करे, एथीज सांभळनारनी आशातना वर्जीने धर्म कहे, अथवा अन्य पाणी भूत जीव सत्वोने बाधा न करे, ते मुनि पोतानी मेळे पोतानो रक्षक होवाथी अनाशातक छे. तेम बीजा क्रोधी न बनाववाथी पोते बीजामी आशातना करतो नथी. तेम कोइ आशातना भी करे तो तेनी अनुमोदना न करतो (बीजा) मराता पाणीओ भूतो जीवो सत्वोने पोताना तरफथी के पारका तरफथी पीडा न थाय ६ तेवो धर्म कहे. जेमके कोइ लौकिक कुमावचनीक पासत्था विगेरेने दान आपवानी प्रशंसा करे, अथवा कुवा तळाव बनाववानी प्र शंसा करे तो पृथ्वीकाय विगेरेने दुःख थाय, तेनो दोष साधुने लागे, तथा ते दाननी मिंदा करे तो ते बीजा जीवोने दान न IP मलवाथी साधुने अंतराय कर्म बन्धावानो विपाक भोगवत्रो पडे. का छे के: जे उ दाणं पसंसंति, वह मिच्छंति पाणिणं । जे उणं पडिसेहिति, वित्तिच्छेअं करिति ते ॥१॥ जेओ साधु थइने असाधुना दाननी प्रशंसा करे छे, ते सावध होवाथी साधुओने प्राणीोना वधनो दोष लागे छे. अने ते HSGछन्वतन्त्र For Private and Personal Use Only
SR No.020011
Book TitleAcharanga Stram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1934
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size10 MB
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