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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम् टा॥१९॥ ब- __“जो, एम दर्शन-बान--चारित्र त्रणेमां सम्यग्वादनो संभव थाय छे, तो, दर्शननोज सम्यक्त्रवाद केम रुन थयो छे? के जे सम्यग्दर्शननुं अहीं वर्णन करवान छे. I उतर:-ते दर्शनना भावना भावी (विद्यमानपणाथीज) ज्ञानचारित्रनो भाव के. जेमके-मिध्याष्टिने बानचारित्र होना नथी. ॥४९९॥ [तेने ज्ञान होय; छतां अज्ञान कडेवाय.] अहीं सम्यक्त्वनी प्रधानता बतावचा आंधळा तथा देखता एवा वे राजकुमारोनुं दृष्टांत । बाल-[मंदबुद्धिवाळा] तथा स्त्री विगेरेना बोध माटे कहे छ: उदयसेन नामनो राजा हतो. तेने वीरसेन तथा मूरसेन नामे वे कुमारो छे. तेमा वीरसेन आंधळो के. तेणे पोताने योग्य | गांधर्वादिक [गावा विगैरेनी] कळाओ शीखी; अने बीजा कुमारे धनुर्वेदनो अभ्याम करीने लोकमां प्रशंसनीय पदवी पाम्यो. आ४ सांभळीने वीरसेन कुमारे विज्ञप्ति करी के, हुं पण धनुर्वेदनो अभ्यास करु. पछी राजाए नेना आग्रहथी आजा आपी; अने योग्य उपाध्यायना उपदेशथी, अने अतिशय बुदिना कारणथी शब्दवेधी थयो. पछी ते जुवान थयो; त्यारे सारा अभ्यासथी मेळवेला धनुर्वेदनां ज्ञानथी अने उत्तमवर्तनथी अगणित चक्षुदर्शन सद्-असत्भावथी, तथा शब्दवेधीपणाथी ज्यारे शत्रु राजा लडवा आल्यो; त्यारे राजा पसे युद्धमा जवा मांगणी करी. राजाए आज्ञा आपवाथी विरसेने शत्रुनुं सैन्य जीतवा प्रयत्न कर्यो; पण शत्रुए अंधपणु Pजाणीलीधाथी चुप बेसाथी वीरसेनहुँ कइ न चास्युं त्यारे शत्रुना सैन्ये तेने पकडी लीयो पछी सूरसेने ते वृत्तांत जाणीने राजने पूछीने मूक्ष्म तीरोना सेंकडोनो वरसाद वरसवी शत्रुना सैन्यने जीती भाइने मुकाब्यो. आ प्रमाणे अभ्यास सारी रीते करी उद्यम करवा छतां पण चक्षुनी खामीथी इच्छित कार्य करवा समर्थ न थयो, तेज प्रमाणे % कन्न A4-% % For Private and Personal Use Only
SR No.020010
Book TitleAcharanga Stram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages190
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size5 MB
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