SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 73
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥४९४ ॥ www.kobatirth.org जे अहंकारी बने ते समय आवतां कपटी पण बने. लोभी पण बने, अने जे लोभी होय, ते अनुक्रमे प्रेमी पण बने, अने पोतानुं इच्छित न थतां द्वेषी पण बने, अने ते मोह करनारो पण थाय, अने ते मोह करीने गर्भमां उत्पन्न श्राय पछी जन्मनुं दुःख वेठे, ते मार ( हिंसा अथवा आरंभना कृत्य ) पण करें, अने पछी ते नरक गामी पण धाय, त्यांथी चवीने तिर्येच थाय, एम परंपराए अनेक दुःखोने ते संसारी जीव भोगवे छे, पण जे मेघावी ( बुद्धिमान ) साधु छे ते क्रोध विगेरेथी दूर रहे छे ते बतावे छे, पटले क्रोध मान माया लोभ प्रेम द्वेष मोह गर्भ जन्म मार नरक तिर्येच विगेरेनां दुःखो क्रोधरूप बीजने त्याग कर - वाथी भोगवतो नथी, आ त्रधुं जे तत्वज्ञान बतान्युं ते वधा उद्देशानुं शरुतथी ते अहिं सुघी तीर्थंकर कलुंछे, अने ते तीर्थकर जीवोने पीडा करनार शखने छोडीने आठ कर्मनो अंत करनार थया छे एटले तेओ कर्म उपादान कारण क्रोध विगेरे प्रथम त्यागीने पोताना कर्मो जे पूर्वे बांधेलां तेने भेदनारा थया, तेओने केवळज्ञान थवाथी संसारी कोइपण जातनी उपाधी नथी एटले द्रव्यथी सोनुं चांदी विगेरे नथी तेम भावथी आठ प्रकारनां कर्म नथी, आ प्रमाणे शिष्यना मनमां तीर्थकरने कोइपण जातनी sort के भावी कोइ पण जातनी उपाधि छे के नहि ? तेनो उत्तर को नथी. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आ वचन सुधर्मास्वामि जंबूस्वामीने कहे छे, के में भगवानना चरणनी सेवा करतां जे सांभळपुं तेने अनुसारे तने कहुं लुं, पण मारी मति कल्पनाथी हुं कहेतो नथी. सूत्र अनुगम को, चौथो उद्देशो पुरो भयो अने तेनी समाप्तिथी अतीत अनागत नय | विचारने सूत्र थोडामा बताववाथी शितोष्णीय नामनुं श्रीजुं अध्ययन समाप्त थयुं. -aile For Private and Personal Use Only सूत्रम ॥४९४॥
SR No.020010
Book TitleAcharanga Stram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages190
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy