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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 15 कारे थाय छे (आम चे भाव आव्या, वाकीनामां पण तेज प्रमाणे जाणवा.) आचाई जीवना आ भवगुणनुं शीतपणुं अने उष्णपणाना रुपमुं वर्णन नियुक्तिकार खुलासाथी पोतेज कहे छे. सूत्रम् Hसीय परिसहपमायुवसमविरई सुहं चउण्हं तु । परीसहतचुजमकसाय, सोगाहिवेयारई दुक्खं दारं ।२०।। ॥४२४॥ भावशीत, ते अहीं जीवना परिणामरूपे ग्रहण करे छे. ते आ परिणाम छे, के संयममार्गमांथी न पडतां साधुए सकाम al॥४२॥ 16/निर्जरामाटे परिषहो समभावे सहन करवा, तथा कार्थमां शिथीलता एटले 'विहारमा प्रमाद' न करवो तथा मोहनीय कर्मने शांत करचु ते सम्यक्त्व. देशविरति तथा सर्व विरति लक्षणवाळो छे अथवा उमशम श्रेणो आश्रयो छे. ते अथवा क्षपक श्रेणी आश्रयी * कपाय विगेरेना क्षयरूप छे, P विरति-प्राणातिपात विगेरेथी दूर रहे, ते विरतिछे. एटले ते सत्तर प्रकारनो संयम छे, तथा सुख एटले पूर्वना पुन्यना। उदयथी भोगव_ ते छे. आ परिषह विगेरे तथा शीत गरमी बन्नेने गायाना चे पदमा कहे छे: परिषह पूर्वे कहेला स्वरूपवाला छे; अने तपमा उद्यम करवो; ते तप वार प्रकारच्छे, ते शक्ति प्रमाणे आचरg; तथा क्रोध 18/ विगेरे कषायो छे, तथा इष्ट न मळे अथवा नाश थाय, ते शोक थाय; ते आधि छे, तथा स्त्री, पुरुष, नपुंसक, एम त्रण वेद छे. अरति एटले, मोहना चिपाकथी चित्तमा मलिनता थाय ते छे, तथा रोग विगेरे दुःखो छे. आ परिषह विगेरे पीडाकारक होवाथी 1 आत्मा तपे तेथी उष्ण छे. आ प्रमाणे टुंकामां गाथानो अर्थ छे, अने एनुं विशेष वर्णन नियुक्तिकार पोते कहे छे:-परिषह,15) SOCIES For Private and Personal Use Only
SR No.020010
Book TitleAcharanga Stram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages190
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size5 MB
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