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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम् ॥४२३॥ कर्मोनो नाश थतां मोक्ष थाय छे, ने वे गाथामां बतायुं छे. नामनिष्पन्ननिक्षेपामा 'शीतोष्णीय' अध्ययन छे माटे शीत उष्ण ब-3 आचा० नेना निक्षेपा कहे छे: नाम ठवणा सायं, दवे भावे य होइ नायव्वं । एमेव य उण्हस्सवि, चउबिहो होइ निक्खेवोनि. गा.१२००1। ॥४२३॥ नाम. स्थापना, द्रव्य अने भाव एम चार प्रकारे निक्षेपा . तेमां नाम स्थापना सुगमने छोडी द्रव्य निक्षेपोशोत अने उष्णनो कहे छे. दव्वे सीयल दव्वे, दव्वुणहं चेव, उहदव्वं तु । भावे उ पुग्गलगुणो जीवस्स गुणो अणेगविहो ।२०१। . ज्ञ शरीर भव्य शरीर छोडी व्यतिरिक्तमा गुण गुणीना अभेदपगाथी द्रव्य शीत ठंडा गुणथी युक्त द्रव्य, अथवा शीतर्नु कारण ही जे द्रव्य ते द्रव्यना प्रधानपणाथी ने शीत द्रव्य हे, ते बरफ हिम करा विगेरे छे, एज प्रमाणे उष्णमां गरम पदार्थ लेवा. भाषयी चे प्रकारे छे एटले पुद्गालाश्रयी, तथा जीवाश्रयी छे, ते गाथाना वे पदमा बतावेल छे, तेमां पुद्दालाश्रयी ठंडो गुण ६ गुणना प्रधानपणाने बताववारूपे छे, तेम भाव उष्णमां पण जाणवू. जीवने आश्रयी शीत अने उष्ण रुपवाळो अनेक प्रकारे गुण छे. जेमके औदयिक विगेरेज भायो छे. तेमां औदयिक ते कर्मना उदयथी प्रगट ययेल नारकी विगेरे जीवोने भवना आश्रयी पोतानी मेळे कपाय थाय छे ते उष्ण भाव जाणवो. अने औपशमिक ते सात प्रकृतिना उपशमथी उपशम सम्यक्त तथा विरति (चारित्र) रूप ठंडो भाव छे. तथा क्षायिक भाव पण ठंडो छे. कारणके ते क्षायिक सम्यक्त्व तथा चारित्र रुपवालो छे. अथवा बघा कर्मनो दाह ते (क्षायिकभाव) सिवाय उत्पन्न यतो नथी. माटे ते उष्ण छे. तेज प्रमाणे विवक्षाथी बीजा पण थे ----- For Private and Personal Use Only
SR No.020010
Book TitleAcharanga Stram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages190
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size5 MB
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