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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥४८२० www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चोथो उद्देशो त्रीजो पुरो थवा पछी चोथो कहे छे तेनो आ प्रमाणे संबन्ध छे. गया उद्देशामां कयुं के फक्त पाप न करवाथी के दुःख सहन करवाथी साधु न कहेवाय, पण निष्प्रत्युह (अविघ्नपणे) संयम अनुष्ठान करवाथी साधु थाय. ते बताव्यं. अने निष्प्रत्युहता (अविघ्नपणुं) | कषायने दूर करवायी थाय छे. तेथी हवे पूर्वे कट्टेल उद्देशाना अर्थाधिकारवाळु सिद्ध करे छे, तेथी आ प्रमाणे संबन्धे आवेल उद्देशाना सूत्र अनुगममां सूत्र कहे छे. संवंता कोह च माणं च मायं च लोभं च एवं पासगस्स दंसणं उवरयसत्थस्स पलियंत करस्स आयाणं सगडब्भि (सु० १२१) साधु ज्ञानादि सहित दुःख मात्रथी घेरायलो छतां अव्याकुल मतिवाको आत्मद्रव्य भूत लोकालोक प्रपंचथी मुक्त थया जेवो | पोतानुं तथा परतुं हित बगाडनार क्रोधने वमन करनारो छे (बम धातुनो अर्थ दूर करवाना अर्थमां छे तेनो भविष्यकाळ लइए तो बीजी विभक्त लागे, नहितो छठ्ठी विभक्ति लागू पडे) अर्थात् शास्त्रमां कहेल अनुष्ठानने जे साधु विधि प्रमाणे करे, ते थोडा कामां क्रोधने दूर करशे ए प्रमाणे बीजे पण समजी लेबुं. एटले पोताना उपघात करनार उपर क्रोध कर्मना विपाकना उदयथी क्रोध थाय, जाति कुळ रुप बळ विगेरे कारणे जे गर्व थाय ते मान छे, परने उगवा रूप विचार ते माया छे. तृष्णाना आग्रहनो परिणाम ते लोभ छे. ते वधाने क्षपणा (कर्म खपावत्रा) तथा उपशम (शांत करवा) तेने आश्रयी आ क्रोध विगेरे चारनो अनुक्रम छे. अनं For Private and Personal Use Only सूत्रम् ॥४८२॥
SR No.020010
Book TitleAcharanga Stram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages190
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size5 MB
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