SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 51
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir त बताव छे. अन्योन्य जे शंका अथवा, एकबीजानो भय अथवा लज्जा, ते लज्जावडे अथवा लज्जाने ध्यानमालइने परस्पर आशंकाल अथवा अपेक्षावडे, पापना उपादानरूप-जे कर्मनुं अनुष्ठान छे, ते साधु न करे; एटलुं पाप न करवाथी मुनि कहेवाय एटले जो, आचा०४/ परनी लज्जाथी पाप न करे; तो, ते मुनि कहेवाय? उ.-तेटलाथी मुनि न कहेवाय; पण अद्रोहना विचारवाळो मुनिज निश्चयथी साधुसूत्रम छे. जो, ते प्रमाणे, बीजी उपाधिना वशथी ते निर्मळ भाववाळो न होय; तो मुनि न कहेचो. मुनिपणाना भाववाळो मुनि कहेवाय. ॥४६॥ एटले, मूत्रमा सरळ शिष्य गुरुने पुछे छे केः IA ॥१६॥ कोइ साधु घीजा साधुओना डर अथवा लउनाथी आधाकर्मादि आहार न ले तो, ते मुनि भावसाधु कहेवाय के नहि ? आचार्य कहे छे बीजो व्यापार छोडीने सांभळ, बीजी उपाधि जे पापना व्यापाररूप छे, तेने त्यागवाथी भाव साधुपणुं थाय छे, एथी एम समजवू के, अंतःकरण निर्मळ में करीने साधुनां अनुष्ठान करे; तेज भावमुनिपणुं छे, शिवाय नहि. 10 उपर कहेल अभिमाय निश्चयनयनो छे. हवे, व्यवहारनयनो अभिप्राय कहे छे:-जे सम्यक्ष्टि छ, अने पंचमहाव्रत सीधेला 18 छे, तेनो भारवहन करवामा प्रमाद करीने पण बीजा समान साधुनी लज्जावडे, अथवा गुरु महाराजना भयथी अथवा गौरव (पोतानां उत्तम कुळ विगेरेना कारणे कोइ साधु आधाकर्म विगेरे दोषिन आहार विगेरे छोडी पडिलेहणा विगेरे क्रिया करे; अथवा तीर्थनी शोभा माटे महिनाना उपवास विगेरे लोकप्रसिद्ध क्रिया करे; तो, तेमां तेना मुनिभावपणानुन कारण जाणवू. कारणके सेवी धर्म15/क्रिया करतां परंपराए (धीरे धीरे) तेनी शुभ भावनी उत्पत्ति थशे. For Private and Personal Use Only
SR No.020010
Book TitleAcharanga Stram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages190
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy