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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥४६७॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अथवा सन्धि एटले अवसर धम अनुष्ठान करवानो आव्यो छे तेने जाणीने लोक एटले १४ मकारनां जीवोने उपजवाना १४ स्थान छे, तेने जाणीने जीवोने दुःख देवानुं कृत्य न कर. (संधिना त्रण जुदा अर्थ बताव्या. प्रथममां विवर एटले बाकुं अथवा फाट बतान्युं के. शत्रुथी घेरातां अजसर जोड़ने प्रमाद न करतां नासीज; तेम मोह दूर थतां, संसारथी तरीज बीजो अर्थ सांधो बताव्यो. एटले, जेम गृहस्थो धम्मां फाट पडे; तो, प्रमाद कर्या विना पुरीदे तेम साधुने पापना उदयथी चारित्रमां दोष लागे; तो, सरव शुद्धि करीले. त्रीजो अर्थ अवसर कर्यो छे. एटले, धर्मना अवसरे धर्म करी बीजा जीवोने दुःख धायः तेनुं कृत्य न कर एम बताव्यं.) बळी कहे छे केः—हे साधु ! तुं जेम, पोताना आत्माने सुख व्हालुं गणे छे, अने दुःख अप्रिय माने छे, तेवी रीते बहानां जीवो उपर पण मानी ले भने पोताना आत्मा समान मानीने वधां जीवो सुखना बांच्छक, अने दुःखना द्वेषी जाणीने तेओने न थइश; तेम बीजाओथी जुदा जुदा उपायोवडे तेमनो घात न करावीश. जो के, बीजा मतना केटलाक साधुओ जीवदयाने मुख्य मानीने स्थूळसच (मोटा जीव अथवा हालता चालता जीव ) ने मारता नथी; तोपण, तेओ पोताने माटे रंधावीने खाय छे; तथा गृहस्थ माफक वस्तुनो संचय करवाथी तेमना लीधे, सूक्ष्म (नाना जंतुओ, अथवा एकेन्द्रिय) जीवो विगेरे हणाय छे, तेथी तेओ घातक छे, एटले बीजा पासे हणावे छे, अने हणनारनी अनुमोदना करे छे. ( माटे साधुए तेवो पण दोष न लागे: माटे, साधु माटे रांधेलो आहार न वापरवो; तेम, संचय पण न करवो.) हवे एमबतावे छे के उपर प्रमाणे जण करणयी हिंसा न करवी. तेटलाथी साधु न कहेवाय; पण जेमां, पापकर्मनुं न करवानुं कारण छे. For Private and Personal Use Only सूत्रम् ।।४६७॥
SR No.020010
Book TitleAcharanga Stram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages190
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size5 MB
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