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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatrth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir आचा० सुत्रम् ॥६०१॥ ॥६०१॥ khe फरतां प्रमार्जन करता कोइपण अवस्थामा पोतानी कायाना समागममां आवेला संपातिम (उडता) केटलाक जंतुओ परिताप पामे, | केटलाक ग्लानी पामे, कोइनो अवयव नाश पामे, अने अंतअवस्था तो सूत्रकारज बतावे छे के, केटलाक पाणथी पण दूर थाय हे, आयां कर्म संबन्धी विचित्रता छ, शैलेशी अवस्थामा रहेला साधुने मशक विगेरेना कायनो स्पर्श यतां कोइ जंतु मरण पामे, तो पण बन्धना उपादान कारण योगना अभावथी बन्ध नथी. उपशांत तथा क्षीणमोह तथा संयोगी केवलिने स्थिति निमित्त 'कषायो' ना अभावथी एक सययनोज बन्ध छे. अप्रमत्त साधुने जघन्यथी अंतर्मुहुर्त अने उत्कृष्टथी कोडाकोडी सागरोपमनी अंदरनो बन्ध छे, पण प्रमत्त साधुने अनाकुट्टीना कारणे तथा विना देखे वर्तन करवाथी कोइ पाणीनो पोताना पग विगेरेथी स्पर्श थतां तेने उपतापना विगेरे थता जघन्यथी तथा उत्कृष्टथी अप्रमत्त माफक छे, पण प्रमादना कारणे काइक विशेष बन्ध छे. अने ते तेज भवे क्षेपाय ६ (दूर थइ सके) छे, ते सूत्र बडेज बतावे छे. आ जन्ममांज भोगव, ते आलोकवेदन छे, तेनावडे भोगवq ते आलोकवेदनवेध छे, तेथी आवी पडेलु थे आलोकवेदनषेध आपतित छे, तेनो भावार्थ आ छे, प्रमत्त यतिए पण जे विना इच्छाए भूल करी ते कायना। संघट्टन विगेरेथी कर्म बन्ध थयो, ते आ भवना अनुवन्धरूपे छे, ते भवे खेरवी शकाय तेम छे, आकुट्टीथी करेला कृत्यमां भं करवं जाते कहे छे, आगममां कहेल कारण विना (फक्त भुलथी) प्राणीने दुःख दीधुं होय, तोश परिझाए जाणीने विवेक करवो, प्रायश्चित ठेवू, ते दश प्रकारचं छे, (ने गुरु पासे लेवं) अथवा तेनो अभाव करे, अर्थात् एवं कृत्य करे के तेनो अभाव थाय, कर्मनो जेम अभाव थाय, ते बताये छे, 'एवं'-हवे बतावे ते उपाय प्रमाणे ते क्रोधादिथी करेला कृत्यना विवेक माटे वेदविद् (ज्ञाता) साधु प्रमादने दुर करी दश प्रकारमांची कोइ पण प्रकारनं जे योग्य होय, ते सम्पय अनुष्ठानवडे करीने अभाव करे अथवा तीर्थकर है For Private and Personal Use Only
SR No.020010
Book TitleAcharanga Stram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages190
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size5 MB
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