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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥५९५॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir साधु एकलो पडतां नाश पामे छे, ते नीचली गाथामां बतावे छे. एवं गच्छ मुद्दे सारणविईहिं चोईया संता । णिति तओ सुहकामी, मीणा व जहा विणस्संति ||१| गच्छ समुद्रमा रहेता साधुने प्रमादथी भूलतां प्रेरण करता पोते कंटाळी नीकळी जाय; तो ते सुखना बांच्छक माछला माफक नाश पामे छे. गच्छमि के पुरिसा सउणी जह पंजरंतरणीरुद्धा। सारणवारणचोइय पासस्थगया परिहरति ॥३॥ शकुनी पक्षीने जो. पांजरामां पूरेल होय तो, जीवहिंसा विगेरे न करी शके. तेज प्रमाणे स्मारण ( दोषने याद करावना ) वारण (पापथी अटकावा) अने धर्ममां प्रमाद करवाने प्रेरणा करवाथी पासस्था ( ढीलापणाने) पाम्या होय; छतां पण गच्छमां रहेला साधुओ पाछा सुधरी जाय छे. जहादियापोयमपक्ख जायं, सवासया पविउमणं मणागं तमचाइया तरुणमपत्त जायं ढंकादि अवत्तगमं हरेजा ॥ ४ ॥ जेम पक्षीनुं बच्चु पांखो विनानुं पोताना माळामांथी नीकळवानी इच्छा करे; त्यारे, शंखोना जोर विनानुं ते बच्वं आम तेम कुदका मारतां तेने मोर विगेरे उपाडी जाय छे उपर प्रमाणे सिद्धांत पूरा भण्या विना, अने लायक उम्मर विना गुरुए उपको आपतां जे समूदाइथी रीसाइ नीकळी जाय; ते तीर्थीक ध्वांश विगेरेथा भ्रष्ट थाय छे ते शाखकार बताषे छे " For Private and Personal Use Only सूत्रम ॥ ५६५॥
SR No.020010
Book TitleAcharanga Stram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages190
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size5 MB
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